कृष्ण कुमार यादव की पुस्तक समीक्षा : संस्‍कारों को सहेजती डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु की कविताएँ

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डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु जी बाल मन के चितेरे हैं। बच्‍चों के लिए लिखी उनकी कविताओं में जहाँ मनोरंजक तत्‍व मौजूद हैं वहीं शिक्षा और संस्‍कार भी।...

shikshaprad bal kavitayen (WinCE)

डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु जी बाल मन के चितेरे हैं। बच्‍चों के लिए लिखी उनकी कविताओं में जहाँ मनोरंजक तत्‍व मौजूद हैं वहीं शिक्षा और संस्‍कार भी। सुयश प्रकाशन, दिल्‍ली द्वारा सद्यःप्रकाशित उनकी पुस्‍तक ‘‘शिक्षाप्रद बाल कविताएँ‘‘ इसी कड़ी को आगे बढ़ाती हैं। बाल मन की विभिन्‍न अनुभूतियों को समेटती 63 बाल कविताओं का यह संकलन ऐसे समय में आया है जब समाजशास्‍त्री यह प्रश्‍न उठाने लगे हैं कि बाल-साहित्‍य के नाम पर बच्‍चों को अधकचरा ज्ञान परोसा जा रहा है। ऐसे में डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु की यह कृति अंधेरे में प्रकाश की किरण भी दिखाती है और बाल-साहित्‍य को उसके समग्र भाव से प्रस्‍फुटित करती है।

प्रस्‍तुत कृति का आरम्‍भ ‘गणेश वंदना‘ से आरंभ कर डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु संस्‍कारों की भाव-भूमि तैयार करते नजर आते हैं- आदिपूज्‍य जय गणेश/सृष्‍टि-दृष्‍टि धारी/प्रथम पूज्‍य जय गणेश/शरण मैं तुम्‍हारी। ‘कहलाएं अच्‍छी संतान‘ बाल-कविता में माँ सरस्‍वती से वरदान मांगता बच्‍चा इसी भाव-भूमि को उर्वर करता है। ‘श्रम की महिमा‘ अनंत है। यह जीवन की सार्थकता को उजागर करती है। महापुरूषों ने भी श्रम की आराधना पर जोर दिया है, फिर डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु इसे गीतों में क्‍यों न सजाते- परिश्रम की बूँदों में/गंगा का पानी है/भागीरथ के श्रम की/बेरोक रवानी है। समाज में श्रम साधक के साथ-साथ ऐसे लोगों की भी बहुतायत है जो इसकी आड़ में अपना उल्‍लू सीधा करते नजर आते हैं। ‘ट्रैक्‍टर‘ कविता की पंक्‍तियाँ देखें- ट्रैक्‍टर लेकर खेत जोतने/पहुँचा चतुर सियार/कहा बैल ने बँधे पेट पर/लात न मारो यार। डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु इसे यहीं नहीं छोड़ते बल्‍कि ‘इनसे तुम सावधान रहना‘ बता कर बच्‍चों को सचेत भी करते हैं- इनसे सावधान तुम रहना/तुम में हैं ऐसे भी बच्‍चे/अपने को प्रहलाद बताते/बिना किए व्रत पूजा संयम।

‘माँ‘ बच्‍चे की प्रथम शिक्षक होती है। बच्‍चों के लालन-पोषण हेतु वह बहुत कुछ सहती है, तभी तो वह देवी कहलाती है- मेरी माँ है अन्‍नपूर्णा/जब वह मुझे खिलाती है/मेरी माँ है देवि शारदा/सब कुछ मुझे सिखाती है। इस माँ से परे एक ऐसी भी माँ है जो सभी को समभाव से देखती है और सभी का पोषण करती है। ‘तन से ज्‍यादा वतन‘ की सीख देते हुए डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु के देश प्रेम भरे स्‍वर अनुगुंजित होते हैं- देश हमारा माँ जैसा ही मीठा है, तो उस देश भारत माता की ‘जय हो‘ की हुंकार भरते हुए बच्‍चों के सामने एक आदर्श भी प्रस्‍तुत करते हैं- वीर जवानों की जय हो/भारत माता की जय हो/जो कि सत्‍य के लिए लड़े/जो कि न्‍याय के लिए अड़े।

बाल-मन निश्‍छल एवं कोमल होता है। प्रकृति से बाल-मन का लगाव जग जाहिर है। सतत्‌ विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति बच्‍चों को सचेत करने में डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु कविताओं का भरपूर उपयोग करते हैं। ‘पानी राजा‘ की पंक्‍तियाँ गौरतलब हैं- राजा ने उपहार दिए/फसलों पर उपकार किए/पानी राजा दानी है/सारी धरती धानी है। ‘पानी-पानी‘ में भी कुछ ऐसे ही भाव गुंफित हुए हैं। कल-कल बहता पानी एक संदेश भी देता है- कहाँ सुबह है, शाम है/बहना मेरा काम है/बस आराम हराम है/जीवन मेरा नाम है (निश्‍चय)। हरियाली का नेता, व्‍योम-कविता, झूलो, परिचय, अहा, किस्‍में, परिवर्तन, सुनो, निःस्‍वार्थी जैसी तमाम कविताएं प्रकृति के निःस्‍वार्थ एवं कल्‍याणकारी गुण को उभारती हुई एक संदेश देती हैं- बादल ने कब पूछा धरती से/जाति तुम्‍हारी क्‍या है पानी दूँ (निःस्‍वार्थी)। इन पंक्‍तियों के बहाने बाल-मन के चितेरे डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु आज के समाज में पनप रहे जाति, धर्म, क्षेत्र पर आधारित भेदभाव एवं विषमताओं पर भी उंगली उठाते हैं।

डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु ने जीवन का एक लम्‍बा पड़ाव पार करते हुए जीवन और समाज को बहुत नजदीक से देखा है। वे नहीं चाहते कि बच्‍चों में किसी भी प्रकार के दुर्गुण अथवा कमजोरियाँ आएं। उनकी लेखनी इन सब के प्रति सतत्‌ प्रयत्‍नशील है। वे बच्‍चों को इतना मजबूत बनाना चाहते हैं कि वे भविष्‍य की दीवार अपने सुदृढ़ कंधों पर उठा सकें। कभी वे किसान बनोके बहाने श्रम का गीत गाते हैं तो कभी बच्‍चों के दिल के दर्द को यूँ बांँटते हैं- हमें सिखाया गया, नकल करना बेहतर/रिश्‍वत की तरकीबों से हर सीख मिली/टूटे पुल दुर्घटनाओं अतंकों के/बिन माँगी अनचाही जबरन भीख मिली (भविष्‍य)। बच्‍चों की तरफ से वे बड़ों पर सवाल भी उठाते हैं- शिक्षा देना है आसान/किन्‍तु कौन देता है ध्‍यान (इनसे जान बचाना मुश्‍किल)। खिड़की खोलो, कश्‍मीर बचायेंगे, मत बहकाओ, ताकत कूतें, अशोक के श्‍ोर, स्‍वर जागें, करते उन्‍हें प्रणाम, स्‍वाधीनता, क्‍या होगा, चिंतन जैसी तमाम कविताओं में बाल मन को दूषित करती विसंगतियों को उठाते हुए और इनके प्रति सचेत करते हुए कोमल भाव गुंजायमान हैं। रक्‍तदान जैसे पवित्र कार्य के प्रति बच्‍चों को प्रवृत करती कुछ पंक्‍तियाँ हैं- स्‍वर्णदान से श्रेष्‍ठ दान है/रक्‍तदान दो रक्‍तदान दो/खुदगर्जी की ओछी सीमा लाँघो/सब अपने हैं इन्‍हें रक्‍त से बाँधो (रक्‍तदान दो)।

वर्तमान दौर टेक्‍नालोजी का है, पर कोई भी टेक्‍नालोजी मानव का स्‍थान नहीं ले सकती। टेक्‍नालोजी की अपनी सीमायें हैं और इन सीमाओं से परे हम उनसे आशा भी नहीं सकते। कम्‍प्‍यूटर 21वीं सदी का सबसे बड़ा आविष्‍कार है, पर अपनी बाल-कविताओं में डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु उसे भी चौंका देते हैं- मैंने पूछा ओ कम्‍प्‍यूटर/क्‍या खेती कर सकते?/वह बोला यह बहुत असंभव/रोबो सिर्फ उचकते (कम्‍प्‍यूटर)। मोबाइल पर ‘मिस काल‘ भी उनकी नजरों से ओझल नही है- मैंने सोचा बिना खर्च पर/कर लूँ बातें सारी/मैंने थी मिस काल मिलाई/वह बोला था ‘सॉरी‘। बच्‍चे जहाँ नई टेक्‍नालोजी को गले लगा रहे हैं, वहीं बुजुर्गों को अभी भी ये समझ में नहीं आते हैं- विज्ञान के चमत्‍कार/रेल मोटर कार/मुझे बहुत भाते हैं/बूढ़ों को बेकार (अपनी-अपनी पसन्‍द)।

बच्‍चों की अपनी दुनिया है और उसमें तमाम ऐसी चीजें हैं जो बचपन को जीवंतता देती हैं। सीढ़ी-सीढ़ी चढ़ेंगे, टॉमी की दुम, कहा आम ने, आया बुखार, रानी बिटिया बिटिया रानी, मौज-मजे, स्‍कूल की बस, टाफी, घोड़े से, छुई छुअव्‍वल, बिदाई गीत, झूलो, अच्‍छी बिटिया, चिरौटा और चिड़िया इत्‍यादि कविताओं में ये भाव अनुपम रूप में प्रतिबिम्‍बित होते हैं।

डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु कृत ‘‘शिक्षाप्रद बाल-कविताएँ‘‘ सरस शब्‍दों में सहज भाव से तमाम शिक्षाप्रद बातें कहती है। डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु बच्‍चों को सीमाओं में अनावश्‍यक बाँधने के नहीं बल्‍कि उनके विकास हेतु उन्‍हें मुक्‍त गगन में विचरण के हिमायती हैं- खिड़की खोलो, मुझे झाँकने दो/समय एक रथ है, हाँकने दो। ऐसी ही तमाम बाल-कविताओं से आच्‍छादित यह अनुपम कृति बाल मन को उनकी असली भाव-भूमि पर जाकर परखती है, चेताती है और कुछ नया करने को सिखाती है। बाल-साहित्‍य माने कुछ भी लिख देना नहीं बल्‍कि इसे स्‍वस्‍थ मनोरंजन का साधन होने के साथ-साथ वैज्ञानिक संपृक्‍त और मानवीय मूल्‍यों व चरित्र निर्माण का उन्‍नयन करने वाला होना चाहिए। बाल मन और उससे जुड़े विविध पक्षो की अनुपम झांकी को समेटे डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु की यह अनुपम कृति इस दृष्‍टि को सामने रखने में सफल दिखती है।

समालोच्‍य कृति- शिक्षाप्रद बाल कविताएँ

कवि- डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु

प्रकाशक- सुयश प्रकाशन, मध्‍यम तल, 1376, कश्‍मीरी गेट, दिल्‍ली-110006

पृष्‍ठ- 80, मूल्‍य- 125 रुपये, प्रथम संस्‍करण- 2008

समीक्षक- कृष्‍ण कुमार यादव, भारतीय डाक सेवा, वरिष्‍ठ डाक अधीक्षक, कानपुर मण्‍डल, कानपुर-208001

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k k yadav

समीक्षक जीवन-वृत्‍त

नाम ः कृष्‍ण कुमार यादव

जन्‍म ः 10 अगस्‍त 1977, तहबरपुर, आजमगढ़ (उ0 प्र0)

शिक्षा ः एम00 (राजनीति शास्‍त्र), इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय

विधा ः कविता, कहानी, लेख, लघुकथा, व्‍यंग्‍य एवं बाल कविताएं।

प्रकाशन ः देश की प्राय अधिकतर प्रतिष्‍ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रकाशन। एक दर्जन से अधिक स्‍तरीय काव्‍य संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन। इण्‍टरनेट पर विभिन्‍न वेब पत्रिकाओं में रचनाओं की प्रस्‍तुति।

प्रसारण ः आकाशवाणी लखनऊ से कविताओं का प्रसारण।

कृतियाँ ः अभिलाषा (काव्‍य संग्रह-2005), अभिव्‍यक्‍तियों के बहाने (निबन्‍ध संग्रह-2006), इण्‍डिया पोस्‍ट- 150 ग्‍लोरियस इयर्स (अंगे्रजी-2006), अनुभूतियाँ और विमर्श (निबन्‍ध संग्रह-2007), क्रान्‍ति यज्ञ ः 1857-1947 की गााथा (2007)। बाल कविताओं व कहानियों का संकलन प्रकाशन हेतु प्रेस में।

सम्‍मान ः विभिन्‍न प्रतिष्‍ठित साहित्‍यिक संस्‍थानों द्वारा सोहनलाल द्विवेदी सम्‍मान, कविवर मैथिलीशरण गुप्‍त सम्‍मान, महाकवि श्‍ोक्‍सपियर अन्‍तर्राष्‍ट्रीय सम्‍मान, काव्‍य गौरव, राष्‍ट्रभाषा आचार्य, साहित्‍य मनीषी सम्‍मान, साहित्‍यगौरव, काव्‍य मर्मज्ञ, अभिव्‍यक्‍ति सम्‍मान, साहित्‍य सेवा सम्‍मान, साहित्‍य श्री, साहित्‍य विद्यावाचस्‍पति, देवभूमि साहित्‍य रत्‍न, ब्रज गौरव, सरस्‍वती पुत्र और भारती-रत्‍न से अलंकृत। बाल साहित्‍य में योगदान हेतु भारतीय बाल कल्‍याण संस्‍थान द्वारा सम्‍मानित।

विशेष ः व्‍यक्‍तित्‍व-कृतित्‍व पर एक पुस्‍तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर रू कृष्‍ण कुमार यादव‘‘ शीघ्र प्रकाश्‍य। सुप्रसिद्ध बाल साहित्‍यकार डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु द्वारा सम्‍पादित बाल साहित्‍य समीक्षा'(सितम्‍बर 2007) एवं इलाहाबाद से प्रकाशित गुफ्‍तगू‘ (मार्च 2008) द्वारा व्‍यक्‍तित्‍व-कृतित्‍व पर विश्‍ोषांक प्रकाशित।

अभिरूचियाँ ः रचनात्‍मक लेखन व अध्‍ययन, चिंतन, नेट-सर्फिंग, फिलेटली, पर्यटन, सामाजिक व साहित्‍यिक कार्यों में रचनात्‍मक भागीदारी, बौद्धिक चर्चाओ में भाग लेना।

सम्‍प्रति/सम्‍पर्क ः कृष्‍ण कुमार यादव, भारतीय डाक सेवा, वरिष्‍ठ डाक अधीक्षक, कानपुर मण्‍डल, कानपुर-208001 ई-मेलः kkyadav.y@rediffmail.com

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रचनाकार: कृष्ण कुमार यादव की पुस्तक समीक्षा : संस्‍कारों को सहेजती डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु की कविताएँ
कृष्ण कुमार यादव की पुस्तक समीक्षा : संस्‍कारों को सहेजती डॉ0 राष्‍ट्रबन्‍धु की कविताएँ
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