महेश ‘दिवाकार’ का चरितकाव्य : वीरांगना चेन्नम्मा – सर्ग 3

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(पिछले अंक 2 से जारी…) सर्ग -3 बालण्णा व रायण्णा, दो बालक उपमान। नागरमल के पुत्र द्वय, मानो ये दिनमान।। आय बैलहोंगल बसे, छोड़ दिया कित्त...

(पिछले अंक 2 से जारी…)

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सर्ग-3

बालण्णा व रायण्णा, दो बालक उपमान।

नागरमल के पुत्र द्वय, मानो ये दिनमान।।

आय बैलहोंगल बसे, छोड़ दिया कित्तूर।

डाकू पीछे था पड़ा, रचता नित्य फित्तूर।।

नागरमल का राज में, बहुत बड़ा व्यवसाय।

धन-वैभव के देश में, होती अद्भुत आय।।

इसीलिए डाकू पड़ा, पीछे धोकर हाथ।

नागरमल कित्तूर का, गये छोड़कर साथ।।

दोनों पुत्रों को दिया, युद्ध-कला का ज्ञान।

निडर, साहसी, वीर थे, सूरज-चन्द्र समान।।

चेन्नम्मा के पिता के, नागरमल थे मीत।

‘धूलप्पा देसाइ’ से, रही अनूठी प्रीत।।

नागरमल के पुत्र द्वय, चेन्नम्मा के भ्रात।

मुँह बोली भगिनी बनी, कहती उनको तात।।

चेन्नम्मा के पिता को, मिली वीर गति युद्ध।

नागरमल करने लगे, देख भाल नित शुद्ध।।

चेन्नम्मा का हर तरह, रखते इतना ध्यान।

अपनी बेटी मानते, जैसे प्राण समान।।

राजनीति-रणनीति का, युद्ध कला का ज्ञान।

चेन्नम्मा को भी दिया, तनय सदृश विज्ञान।।

चेन्नम्मा की वीरता, करते लोग बखान।

आस-पास के नारि-नर, कहते उसे महान।।

पलक झपकते अश्व पर, होती सहज सवार।

चला रही तलवार जब, रुकना तब दुश्वार।।

शक्ति स्वरूपा मानते, दुर्गा का अवतार।

चेन्नम्मा का जन्म ज्यों, गोरों का संहार।।

यहाँ-वहाँ सर्वत्र ही, चेन्नम्मा का शोर।

चर्चा-परिचर्चा करें, इसका ओर न छोर।।

महाराजा कित्तूर ने, सुना चेन्नम्मा नाम।

बुला राज-दीवान को, बता दिया सब काम।।

गुरूसिद्दप्पा ने कहा, सुनो गरीब निवाज!

महाराज से कह दिया, चेन्नम्मा का राज।।

अद्भुत है लड़की बड़ी, निडर और निर्भीक।

यह गोरों के राज की, तोड़ेगी सब लीक।।

धूलप्पा सरदार की, एक मात्र सन्तान।

वीर पिता की वीरता, आन-बान औ’ शान।।

युद्ध कला में अति निपुण, निडर चले शमशीर।

घुड़ सवार होकर चले, मनो सिंहिनी वीर।।

धीर-वीर-अति साहसी, है चेन्नम्मा नाम।

रानी हो कित्तूर की, पूर्ण होय सब काम।।

सुन बातें दीवान की, राजा करे विचार।

चेन्नू साधारण नहीं, है कोई अवतार।।

तरह-तरह के भाव का, हृदय बहे प्रवाह।

भाव-बुद्धि ने कह दिया, कर लो राज! विवाह।।

राजा ने दीवान को, दिया सहज आदेश।

नागरमल को भेज दो, तुम वांछित संदेश।।

राजा आना चाहते, नागरमल के धाम।

पड़ा राज-कित्तूर का, सबके हित का काम।।

राजा ने दीवान को, समझाया मन्तव्य।

याद दिलाया साथ में, मंत्री का कर्त्तव्य।।

राजा का संदेश ले, चले गये दीवान।

मन में दृढ़ विश्वास था, अधरों पर मुस्कान।।

बैलहोंगल पहुँचकर, मंत्री प्रातः काल।

नागरमल से कह दिया, राजा का सब हाल।।

नागरमल ने जब सुना, राजा का प्रस्ताव।

हर्षित मन अतिशय हुये, हृदय में समभाव।।

राजा का प्रस्ताव सुन, हर्षित सब परिवार।

घर बैठे ही मिल गया, चेन्नू को उपहार।।

हर्षित हो कहने लगे, नागरमल सरदार।

चेन्नम्मा के ब्याह का, न्यौता है स्वीकार।।

राजा जी से बात कर, शुभ मुहुर्त लो खोज।

नागरमल परिवार तब, सादर देगा भोज।।

नागरमल से मिल गया, सहज प्यार का दान।

किया राज दीवान ने, खुशी-खुशी प्रस्थान।।

चेन्नम्मा के भाग्य का, निश्चित है उत्कर्ष।

ईश्वर की कृपा बड़ी, मना रहे सब हर्ष।।

दिया जाय कित्तूर में, मंत्री ने संदेश।

राजा अति प्रसन्न थे, सुन अनुकूल विशेष।।

राजा ने दीवान को, इधर दिया आदेश।

शोध लग्न तैयारियाँ, करिये सभी विशेष।।

फैल गया कित्तूर में, घर-घर नव उत्साह।

चेन्नम्मा से कर रहे, राजा शीघ्र विवाह।।

राजा की दो रानियाँ, दो ही जाये पुत्र।

एक काल कवलित हुआ, दूजा बना कुपुत्र।।

द्युत क्रीड़ा-मद्यपान में, डुबा रहा कुलनाम।

राज महल को कर रहा, बेटा निज बदनाम।।

दुराचार में रात दिन, डूबा रहे कुपुत्र।

यों तो वह युवराज था, होता काश! सुपुत्र।।

राजा को चिन्ता बड़ी, रहती थी दिन-रैन।

सोच-सोच आधे हुये, पड़े न तन-मन चैन।।

क्या होगा कित्तूर का, चिन्ता रही सताय।

गतिविधियाँ युवराज की, रक्त चूँसती जाय।।

गोरों की चालाकियाँ, पैदा करें फितूर।

जिस दिन आँखें मुँद गयीं, दास बने कित्तूर।।

राजा ने कित्तूर हित, सोचा विविध प्रकार।

चेन्नम्मा से विवाह ही, हितकर, सही विचार।।

संभव है कित्तूर को, मिले कुशल युवराज।

मानो कोई कर रहा, अम्बर से आगाज।।

उधर चेन्नू की मात से, नागरमल की बात।

भाभी को समझा दिये, राजा के जज़्बात।।

अति प्रसन्न पद्मावती, सुन विवाह प्रस्ताव।

मानो चिन्ता धुल गयी, भरा कसकता घाब।।

चेन्नम्मा ने जब सुना, आये थे दीवान।

लिये राज-कित्तूर का, वैवाहिक फरमान।।

बालण्णा की बात को, मान लिया उपहास।

लेकिन, जब माँ ने कहा, तभी किया विश्वास।।

चेन्नम्मा कहने लगी, सुन विवाह की बात।

सभी लोग क्यों कर रहे, मिलकर मुझसे घात।।

क्या मैं सब पर हो गयी, इतना भारी बोझ।

जेा सबको मुश्किल हुआ, भरना मेरा ओज।।

अभी नहीं कुछ आयु है, भेज रहे ससुराल।

आप न चाहो देखना, क्यों मुझको खुशहाल।।

चेन्नू के सुनकर बचन, माँ हो गयी अधीर।

लाख छिपाये क्यों छिपे, माँ के उर की पीर।।

लगी झलकने नैन में, माँ की ममता-प्यार।

हाथ फेर देने लगी, माँ आशीश-दुलार।।

माँ ने समझाया उसे, दबा हथेली हाथ।

बेटी! तुमको मिल रहा, राजा जी का साथ।।

पिता रहे जिस राज के, बहुत बड़े सरदार।

उसी राज में जा रही, बनकर तुम उपहार।।

माँ के उर में रह सदा, चिन्ता यही अपार।

बिटिया की भांवर पड़ें, कहीं भले परिवार।।

तुम बड़ भागी हो बड़ी, राजा मिले उदार।

रानी बनकर राज की, देना सबको प्यार।।

रायण्णा ने हँस कहा, अब कुछ दिन की बात।

चेन्नम्मा रानी बने, आयेगी बारात।।

आयेंगे बारात में, हाथी-घोड़े खूब।

नाचेंगे हम देखना, मस्ती में भर डूब।।

हाथी चढ़ होगी विदा, बजें नगाड़े-ढोल।

अश्व दौड़ होती चले, बम-बम, हर-हर बोल।।

जय रानी कित्तूर की, जय राजा कित्तूर।

चेन्नम्मा जी आ रही, हटो-बचो कुछ दूर।।

रायण्णा की मसखरी, चेन्नू गयी शरमाय।

बाल सखा को घूरकर, घर से दिया भगाय।।

धीरे-धीरे आ गया, शादी का दिन पास।

चेन्नू थी जो चुलबुली, रहने लगी उदास।।

बदल अचानक ही गया, चेन्नू का व्यवहार।

बदला-बदला सा लगे, उसको सब संसार।।

तरह-तरह के प्रश्न भी, उठते हृदय बीच।

सुन्दर सपने प्यार के, देते उनको सींच।।

शादी की तैयारियाँ, होने लगीं अपार।

तन-मन-धन से लग गया, नागरमल परिवार।।

घर दोनों सजने लगे, होते मंगलाचार।

चुन-चुनकर लाने लगे, नए-नए उपहार।।

जिसका भी जो काम था, किये सभी अनुबंध।

नागरमल ने कर दिये, पूर्ण सभी प्रबंध।।

बालण्णा व रायण्णा, काम कर रहे साथ।

माता-पिता के काम में, बँटा रहे थे हाथ।।

शादी का दिन आ गया, सजा हुआ था गाँव।

दीप, सुमन की माल से, जगमग था हर ठाँव।।

चप्पा-चप्पा गाँव का, सजा हुआ घर-द्वार।

जगमग-जगमग गाँव सब, झिल मिल बन्दनवार।।

दूर-दूर तक गाँव के, फैले तने वितान।

लगता पूरा गाँव था, सुन्दरता की खान।।

नागरमल ने किये थे, हर्षित हो सब काम।

लगता पूरा गाँव था, मानो तीरथ धाम।।

बाहर-भीतर गाँव के, पुते सभी आवास।

कहीं नहीं थी गन्दगी, था सर्वत्र प्रकाश।।

मन्द-मन्द था बज रहा, मधुर-मधुर संगीत।

नार नवेली गा रहीं, यथा लगन सब गीत।।

सभी सजे थे रास्ते, बिछे हुये कालीन।

नागरमल के गाँव के, लोग सभी शालीन।।

पुष्प-झालरों से सजे, छज्जे औ’ दीवार।

जगह-जगह थे स्वागतम् कदली-तोरण द्वार।।

भाँति-भाँति के व्यंजन, सजे हुये मिष्ठान।

देशी घी के बन रहे, सभी यहाँ पकवान।।

सजी दूधिया रोशनी, गाँव-गली-खलिहान।

मानो नभ से चाँदनी, बाँट रही मुस्कान।।

निशा गमकती दिवस-सी, तारे करते नृत्य।

जगह-जगह अगवानियाँ, करें सजे सब भृत्य।।

यथासमय पर आ गयी, राजा की बारात।

मल्लसर्ज दूल्हा बने, स्वागत करे घरात।।

बाजे-गाजे बज रहे, बजें नगाड़े ढोल।

आतिशबाजी छूटती, खोल रही थी पोल।।

हाथी पर बैठे सजे, हैं कित्तूर नरेश।

मानो ऐरावत लिये, प्रकट हुये सुरेश।।

बढ़कर अगवानी करी, नागरमल सरदार।

महाराज को भेंट में, दिया नौलखाहार।।

चेन्नम्मा के पिता का, निभा दिया दायित्व।

नागरमल का सहज ही, निखर गया व्यक्तित्व।।

देख रही पदमावती, राजा बड़े उदार।

नागरमल की संगिनी, आरति रही उतार।।

सभी अतिथियों का किया, स्वागत औ’ सम्मान।

नागरमल ने सभी को, दिया रजत-फल दान।।

ठहरा दिया बरात को, सबके पद अनुरूप।

दूल्हा राजा को दिया, सज्जित भवन अनूप।।

राजा को शुभ लग्न में, दिया चेन्नू का हाथ।

पड़ी भांवरें चेन्नू की, मल्लसर्ज के साथ।।

एक-दूसरे के गले, पहनाई वर माल।

अग्नि समक्ष फेरे पड़े, वर-वधु प्रातःकाल।।

चेन्नम्मा का हो गया, ब्याह रीति अनुसार।

हर्षित नृप कित्तूर ने, बँटवाये उपहार।।

आँसू माँ को आ गये, करके कन्यादान।

नागरमल ने भी किये, स्वर्ण-रजत के दान।।

समय विदा का आ गया, डोली थी तैयार।

बड़ी मार्मिक बज रही, शहनाई भी द्वार।।

मन्द-मन्द बजने लगा, उधर विदा संगीत।

महिलायें गाने लगीं, इधर विदाई गीत।।

विदा किया बारात को, मान बहुत आभार।

नागरमल थे दे रहे, अतिथि विदा उपहार।।

दिया गाँव ने प्यार से, चेन्नू को आशीश।

नागरमल ने की विदा, हाथ फेर कर शीश।।

भावुक नागरमल हुये, पत्नी भी बेचैन।

बाल सखों के देखकर, भर आये दो नैन।।

हाथ जोड़ पद्मावती, खड़ी हुई थी पास।

अपने ‘धी-दामाद’ से, कह न सकी कुछ खास।।

नागरमल कुछ बोलते, गला हुआ अवरुद्ध।

मल्लसर्ज के सामने, जोड़े हाथ विशुद्ध।।

सबके आँसू झर रहे, हाय! बोलता कौन।

सबने ही संतप्त हो, करी विदाई मौन।।

सधवाओं ने गाँव की, दिये अमित उपहार।

वर-कन्या की आरती, करी रीति अनुसार।।

वर-कन्या को दी विदा, गाकर मंगलगीत।

जीवन सुन्दर हो सुखद, बढ़े निरन्तर प्रीत।।

 

राजा मल्लसर्ज की

बारात वापस आ गयी।

नई रानी आयी है

खुशियाँ महल में छा गयीं।

कित्तूर की महारानी ने

स्वागत अनूठा ही किया।

नाम नई रानी का

‘रानी चेन्नम्मा’ दे दिया।

शादी के उपरान्त की

होती यहाँ रस्में अनेक।

राजमहल ने पूर्ण कीं

विधि विधान से प्रत्येक।

राज महल सब कह रहा

नई रानी है अनमोल।

‘रानी चेन्नम्मा की जय’

गूँज रहे थे बोल।

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(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)

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रचनाकार: महेश ‘दिवाकार’ का चरितकाव्य : वीरांगना चेन्नम्मा – सर्ग 3
महेश ‘दिवाकार’ का चरितकाव्य : वीरांगना चेन्नम्मा – सर्ग 3
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