यशवन्त कोठारी का किशोरों के लिए उपन्यास : नया सवेरा

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किशोर उपन्यास नया सवेरा यशवन्त कोठारी यशवन्‍त कोठारी ः जीवनवृत्त्‍ा नाम ः यशवन्‍त कोठारी जन्‍म ः 3 मई, 1950, नाथद्वारा, राजस्‍थान श...

किशोर उपन्यास

नया सवेरा

यशवन्त कोठारी

यशवन्‍त कोठारी ः जीवनवृत्त्‍ा

नाम ः यशवन्‍त कोठारी
जन्‍म ः 3 मई, 1950, नाथद्वारा, राजस्‍थान
शिक्षा ः एम․एस․सी․ -रसायन विज्ञान ‘राजस्‍थान विश्‍व विद्यालय' प्रथम श्रेणी - 1971 जी․आर․ई․, टोफेल 1976, आयुर्वेदरत्‍न
प्रकाशन ः लगभग 1000 लेख, निबन्‍ध, कहानियाँ, आवरण कथाएँ, धर्मयुग, साप्‍ताहिक हिन्‍दुस्‍तान, सारिका, नवभारत टाइम्‍स, हिन्‍दुस्‍तान, राजस्‍थान पत्रिका, भास्‍कर, नवज्‍योती, राष्‍ट्रदूत साप्‍ताहिक, अमर उजाला, नई दुनिया, स्‍वतंत्र भारत, मिलाप, ट्रिव्‍यून, मधुमती, स्‍वागत आदि में प्रकाशित/ आकाशवाणी / दूरदर्शन से प्रसारित ।
प्रकाशित पुस्‍तकें
1 - कुर्सी सूत्र (व्‍यंग्‍य-संकलन) श्री नाथजी प्रकाशन, जयपुर 1980
2 - पदार्थ विज्ञान परिचय (आयुर्वेद) पब्‍लिकेशन स्‍कीम, जयपुर 1980
3 - रसशास्‍त्र परिचय (आयुर्वेद) पब्‍लिकेशन स्‍कीम, जयपुर 1980
4 - ए टेक्‍सूट बुक आफ रसशास्‍त्र (मलयालम भाषा) केरल सरकार कार्यशाला 1981
5 - हिन्‍दी की आखिरी किताब (व्‍यंग्‍य-संकलन) -पंचशील प्रकाशन, जयपुर 1981
6 - यश का शिकंजा (व्‍यंग्‍य-संकलन) -प्रभात प्रकाशन, दिल्‍ली 1984
7 - अकाल और भेडिये (व्‍यंग्‍य-संकलन) -श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990
8 - नेहरू जी की कहानी (बाल-साहित्‍य) -श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990
9 - नेहरू के विनोद (बाल-साहित्‍य) -श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990
10 - राजधानी और राजनीति (व्‍यंग्‍य-संकलन) - श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990
11 - मास्‍टर का मकान (व्‍यंग्‍य-संकलन) - रचना प्रकाशन, जयपुर 1996
12 - अमंगल में भी मंगल (बाल-साहित्‍य) - प्रभात प्रकाशन, दिल्‍ली 1996
13 - साँप हमारे मित्र (विज्ञान) प्रभात प्रकाशन, दिल्‍ली 1996
14 - भारत में स्‍वास्‍थ्‍य पत्रकारिता चौखम्‍भा संस्‍कृत प्रतिष्‍ठान, दिल्‍ली 1999
15 - सवेरे का सूरज (उपन्‍यास) पिंक सिटी प्रकाशन, जयपुर 1999
16 - दफ्‍तर में लंच - (व्‍यंग्‍य) हिन्‍दी बुक सेंटर, दिल्‍ली 2000
17 - खान-पान (स्‍वास्‍थ्‍य) - सुबोध बुक्‍स, दिल्‍ली 2001
18 - ज्ञान-विज्ञान (बाल-साहित्‍य) संजीव प्रकाशन, दिल्‍ली 2001
19 - महराणा प्रताप (जीवनी) पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2001
20 - प्रेरक प्रसंग (बाल-साहित्‍य) अविराम प्रकाशन, दिल्‍ली 2001
21 - ‘ठ' से ठहाका (बाल-साहित्‍य) पिंकसिटी प्रकाशन, दिल्‍ली 2001
22 - आग की कहानी (बाल-साहित्‍य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
23 - प्रकाश की कहानी (बाल-साहित्‍य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
24 - हमारे जानवर (बाल-साहित्‍य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
25 - प्राचीन हस्‍तशिल्‍प (बाल-साहित्‍य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
26 - हमारी खेल परम्‍परा (बाल-साहित्‍य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
27 - रेड क्रास की कहानी (बाल-साहित्‍य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
28 - कब्‍ज से कैसे बचें (स्‍वास्‍थ्‍य) - सुबोध बुक्‍स, दिल्‍ली 2006
29 - नर्शो से कैसे बचें (बाल-साहित्‍य) सामयिक प्रकाशन, दिल्‍ली 2006
30 - मैं तो चला इक्‍कीसवीं सदी में - (व्‍यंग्‍य) सार्थक प्रकाशन, दिल्‍ली 2006
31 - फीचर आलेख संग्रह -सार्थक प्रकाशन, दिल्‍ली 2006
32 - लोकतंत्र की लंगोट (व्‍यंगय-संकलन) - प्रभात प्रकाशन 2006
33 - स्‍त्रीत्‍व का सवाल - (प्रेस)
34 - हमारी संस्‍कृति - (प्रेस)
35 - हमारी लोक-संस्‍कृति - (प्रेस)
36 - बाल हास्‍य -एकांकी - (प्रेस)
37 - स्‍त्री पुरुष सम्‍बन्‍ध कल, आज और कल (प्रेस)
38 - Introduction to Ayurveda- CÈukÈmba Sansskrit PratishtÈn, Delhi 1999
39 & Angles and Triangles (Novel) Press
40 & Cultural Heritage fo Shree Nathdwara (Press)
सेमिनार - कांफ्रेस ः- देश-विदेश में दस राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय सेमिनारों में आमंत्रित / भाग लिया राजस्‍थान साहित्‍य अकादमी की समितियों के सदस्‍य 1991-93, 1995-97
पुरस्‍कार सम्‍मान ः-
1- राज्‍यसभा की कमेटी ‘पेपर्स लेड अॉन दी टेबल अॉफ राज्‍य सभा' द्वारा प्रशंसा पत्र
2- ‘मास्‍टर का मकान' शीर्षक पुस्‍तक पर राजस्‍थान साहित्‍य अकादमी का 11,000 रू․ का कन्‍हैयालाल सहल पुरस्‍कार ।
3- साक्षरता पुरस्‍कार 1996
4- बीस से अधिक पी․एच․डी․ /डी․ लिट्‌ शोध प्रबन्‍धों में विवरण -पुस्‍तकों की समीक्षा आदि सम्‍मिलित ।
5- प्रेमचन्‍द पुरस्‍कार, दलित साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार, लक्ष्‍मी नारायण दुबे पुरस्‍कार आदि ।
सम्‍प्रति ः राष्‍ट्रीय आयुर्वेद संस्‍थान, जयपुर में रसायन विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एवं जर्नल अॉफ आयुर्वेद तथा आयुर्वेद बुलेटिन के प्रबंध सम्‍पादक ।
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यशवन्‍त कोठारी का रचना संसार       

 

उपन्‍यास- ;1;यश का शिकंजा ;2;तीन लघु उपन्‍यास ;3;ngles & triangles ;4;असत्‍यम्‌, अशिवम्‌, असुन्‍दरम्‌

 

व्‍यंग्‍य-संकलन- ;1;कुर्सीसूत्र ;2;हिन्‍दी की आखिरी किताब ;3;राजधानी और राजनीति ;4;अकाल और भेडिये ;5;मास्‍टर का मकान ;6;दफ्‌तर में लंच ;7;लोकतन्‍त्र की लंगोट ;8;मैं तो चला इक्‍कीसवीं सदी में ;9;सौ श्रेप्‍ठ व्‍यंग्‍य रचनाएं

 

पत्रकारिता- भारत में स्‍वास्‍थ्‍य पत्रकारिता

 

बाल-प्रोढ.- ;1;नेहरूजी की कहानी ;2;नेहरू के विनोद ;3;साँप हमारे मित्र ;4;अमंगल में मंगल ;5;नशों से कैसे बचे? ;6;कब्‍ज से कैसे बचे? ;7;खानपान ;8;ज्ञान विज्ञान ;9;प्रेरक प्रसंग ;10;महाराणा प्रताप ;11;‘' से ठहाका ;12;प्रकाश की कहानी ;13;प्राचीन खेल परम्‍परा ;14;हमारे जानवर ;15;रेडक्रास ;16;आग की कहानी ;17;हमारे हस्‍तशिल्‍प ;18;हमारी संस्‍कृति ;19;हमारी लोकसंस्‍कृति ;20;स्‍त्रीत्‍व आदि

 

अन्‍य- ;1;फीचर आलेख संग्रह ;2;इन्‍ट्रोडक्‍शन टू आयुर्वेद ;3;कल्‍चरल हेरिटेज अॉफ श्रीनाथद्धारा ;4;मेन-वूमेन रिलेशनशिप ;5;रसशास्‍त्र परिचय ;6;पदार्थ विज्ञान परिचय

 

सम्‍पर्क-  86,लक्ष्‍मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर

        जयपुर-302002

        फोनः-0141-2670596

        mailto:ykkothari3@yahoo.com

नया सवेरा

खट। खट॥

''कौन ? ‘‘

''जी। पोस्‍टमैन। बाबू जी आपकी रजिस्टरी है। आकर ले लें। ‘‘अभिमन्‍यु घर से बाहर आया। दस्‍तखत किये। लिफाफा लिया। खोला। पढ़ा। और खुशी से चिल्‍ला पड़ा।

‘‘माँ। माँ मुझे नौकरी मिल गयी। ‘‘

अभिमन्‍यु तेजी से दौड़ पड़ा। खुशी के मारे उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। पिछले तीन वर्षो से वह निरन्‍तर इधर उधर अर्जियां भेज रहा था, साक्षात्‍कार दे रहा था मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात। हर बार या तो उसकी अर्जी निरस्‍त हो जाती या फिर साक्षात्‍कार में उसे अयोग्‍य घोषित कर दिया जाता। मगर इस बार उसे पूरी उम्‍मीद थी क्‍योंकि यह नौकरी मेरिट के आधार पर दी जानी थी और मेरिट में उसका स्‍थान पहला था। तमाम सिफारिशी लोग रह गये और अभिमन्‍यु को यह नौकरी मिल गयी। उसने घर के अन्‍दर आकर माँ बापू के चरण छुए। उन्‍होंने आशीष दी। बूढ़ी, पथरायी, पनियल आँखों में खुशी के आंसू छलक पड़े उनके बुढ़ापे की एक मात्र आशा थी अभिमन्‍यु। अभिमन्‍यु की आंखों में भी खुशी छा गयी। कमला ने पूछा।

‘‘ भैया कैसी नौकरी है और कहां लगी है '' ?

‘‘ अरी पगली। नौकरी तो अध्‍यापक की है, मगर साथ में मुझे छात्रों के छात्रावास का वार्डन भी बनाया गया है। यहां से पचास किलोमीटर दूर जो कस्‍बा है न वहीं पर जाना है, सोचता हूं परसों सोमवार को ड्यूटी पर लग जाउं। अब देर करने से क्‍या फायदा। '' क्‍यों बापू।

‘‘ हां बेटा अब जाकर भगवान ने हमारी सुनी है तुम तो मन लगाकर काम करना। ईश्‍वर में आस्‍था रखना। ईमानदारी व सच्‍चाई का दामन थामे रखना। '' कमला इसका सूटकेस तैयार कर दे। भागवान रास्‍ते के लिए कुछ बना देना ताकि जाते ही बेटे को तकलीफ न हो ''

‘‘ अरे तो क्‍या सारी नसीहतें आज ही बाँट दोगे। जाओ जाकर सबसे पहले गली-मोहल्‍ले में यह खुशखबरी सुनाओ और सुनो सबको मिठाई भी बंटवा दो। '' अभिमन्‍यु की माँ ने कहा।

अभिमन्‍यु के बापू गली मोहल्लों में यह समाचार सुनाने के लिए बाहर चले गये। अभिमन्‍यु अपने दोस्‍तों से बतियाने चला गया। कमला और उसकी माँ ने अभिमन्‍यु के जाने की तैयारी शुरू कर दी।

अभिमन्‍यु का गांव एक छोटा सा गांव है। ग्रामीण परिवेश के बावजूद अभिमन्‍यु ने पास के कस्‍बे में रहकर पढ़ाई की। पढ़ाई में हमेशा अव्‍वल आता था। छात्रवृत्‍ति, ट्‌यूशन तथा घर की खेती के सहारे पढ़ गया। अध्‍यापक की ट्रेनिंग भी कर ली। वह नौकरी की तलाश के साथ-साथ गांव के बच्‍चों की ट्‌यूशन करता रहा। वह एक हंसमुख, खूबसूरत जवान लड़का था जो अपने गांव में एक आदर्श के रूप में देखा जाता था उसने गांव के स्‍कूल को सेकण्‍डरी स्‍कूल में बदलने के लिए काफी कोशिश की, लगातार सरकार को लिखता रहा। अफसरों से मिलता रहा स्‍कूल की आवश्‍यकता पर उसने स्‍थानीय अखबारों में भी लिखा और अन्‍त में अपने गांव में स्‍कूल खुलवाने में कामयाब हुआ। दूसरी ओर वह प्रतियोगी परीक्षाओं में भी बैठने की तैयारी कर रहा था।

उसके मां-बाप औसत भारतीय ग्रामीण लोगों की तरह सीधे, सच्‍चे और सरल थे। कुछ खेतीबाड़ी थी, मोटा खाते थे मोटा पहनते थे, तथा घर में कुल चार प्राणी थे अभिमन्‍यु उसकी छोटी बहन कमला और मां-बाप। कमला भी पढ़ रही थी। अभिमन्‍यु उसकी पढ़ाई की ओर विशेष ध्‍यान देता था।

गांव छोटा था, मगर आपसी सौहार्द था। भाईचारा था। गांव के झगड़े आपस में मिल बैठ कर निपटा लिये जाते थे। बड़े बुजुगे्रा का सम्‍मान था। छोटों के पति स्‍नेह और बराबरी के लोग आपस में प्रेम भाव रखते थे। सांप्रदायिक झगड़ों से कोसों दूर था गांव। सर्वधर्मसमभाव था।

अभिमन्‍यु घर से बाहर निकला तो उसे अकबर मिल गया। जो कभी उसके साथ पढ़ता था, मगर अपनी पुश्‍तैनी दुकान पर बैठकर व्‍यापार में व्‍यस्‍त रहता था। उसने अकबर से कहा-

‘‘ अकबर। सुन मुझे नौकरी मिल गयी है। और मैं सोमवार को जा रहा हूं।''

‘‘ अच्‍छा। बहुत बहुत बधाई। ओर सुन अब मिठाई खिलाने वापस आयेगा या अभी खिलायेगा। ''

‘‘ मिठाई तो मां-बाबूजी बांट रहे हे। ''

‘‘ अब हमारी किस्‍मत में तो दुकान लिखी है, सो भुगत रहे हैं। ''

‘‘ इसमें भुगतना क्‍या है, भाई , मुझे परिस्‍थितियों के कारण नौकरी करनी पड़ रही है। ''

‘‘ अच्‍छा सुन। वहां रहकर हमें भूल मत जाना, गांव आते जाते रहना। ''

‘‘ कैसी बात करता है अकबर तू भी। तू मेरा सबसे प्‍यारा दोस्‍त है और रहेगा।''

‘‘ अच्‍छा आ गांव का चक्‍कर लगाकर आते हैं। ''

‘‘ कल जाने की तैयारी करूंगा और सोचता हूं वहीं रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करूं ।''

‘‘ ठीक है। तुम्‍हें पढ़ने का शौक है और हमें मस्‍त रहने का। '' दोनो हंस पड़े।

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अभिमन्‍यु की नियुक्‍ति जिस छोटे कस्‍बे के आवासीय विद्यालय में हुई थी, उस का नाम राजपुर था। यह जिला मुख्‍यालय के पास था। और यहां पर सभी प्रकार की सुविधाएं भी थी। अभिमन्‍यु प्रातः ही अपने सामान के साथ चल पड़ा और बस से राजपुर आ गया। राजपुर में अभिमन्‍यु सीधा अपने विद्यालय में चला आया। वहां पर आते आते दस बज चुके थे। उसने विद्यालय में प्रवेश किया। और मन ही मन विद्या के मन्‍दिर को प्रणाम किया। विद्यालय बहुत बड़ा नहीं था मगर अन्‍य स्‍थानों की तुलना में भवन आदि ठीक थे। पास में ही छात्रावास था, जहां पर इस विद्यालय के छात्र रहते थे। उसने कदम प्राचार्य कक्ष की ओर बढ़ाये। बाहर बैठे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से उसने पूछा-

‘‘ प्रिंसिपल साहब हैं ? ''

‘‘ हां है। मगर व्‍यस्‍त हैं। ''

‘‘ उनसे कहना अभिमन्‍यु बाबू मिलना चाहते हैं, मेरी नियुक्‍ति इसी विद्यालय में हुई हैं ''

‘‘ ओह। आप इन्‍तजार करें मैं प्रिंसिपल साहब को खबर करता हूँ।

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अन्‍दर गया। शीघ्र वापस आया और अभिमन्‍यु को आदर से अन्‍दर जाने के लिए कहा।

अभिमन्‍यु ने अन्‍दर जाते ही प्राचार्य का अभिवादन किया। प्राचार्य ने मुस्‍करा कर उसका स्‍वागत किया। बैठने को कहा और बोले।

‘‘ देखो अभिमन्‍यु। तुम युवा हो। उत्‍साही हो और सबसे बड़ी बात ये कि तुम मेरिट से चुनकर आये हो। मुझे पूरा विश्‍वास है कि तुम अपनी प्रतिभा के बल पर इस विद्यालय के छात्रों को और भी आगे बढ़ाओगे। अध्‍ययन के अतिरिक्‍त तुम्‍हें विद्यालय के छात्रावास का भी अधीक्षक कमेटी ने बनाया है क्‍योंकि यह जरूरी था। सभी छात्र परिसर में ही रहते हैं ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो। ''

‘‘ अभी तुम कहां ठहरे हो ? ''

अभिमन्‍यु ने ध्‍यान से देखा। प्राचार्य महोदय एक प्रौढ़ और शालीन व्‍यक्‍तित्‍व के धनी थे। चश्मे के पीछे से जिज्ञासा भरी आंखें उसे देख रही थी।

‘‘ जी अभी तो मैं सीधा बस स्टैण्ड से आ रहा हूँ ''

‘‘ ठीक है। तुम्‍हारे रहने की व्‍यवस्‍था भी छात्रावास में ही होगी उन्‍होंने घंटी बजाई और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बुलाकर निर्देश दिये।

‘‘ सुनो रामलाल। ये अभिमन्‍यु, बाबू हैं हमारे नये विज्ञान अध्‍यापक तथा छात्रावास के अधीक्षक। इनका सामान छात्रावास-अधीक्षक-आवास में रखवा दो। '' ‘‘ जी बहुत अच्‍छा सरकार। ''

‘‘ और अभिमन्‍यु बाबू आप भी फ्रेश होकर आ जायें। आज से आप की ड्यूटी शुरू है। ''

‘‘ जी बहुत अच्‍छा। धन्‍यवाद, नमस्कार ''

‘‘ नमस्‍कार। ''

रामलाल के साथ अभिमन्‍यु बाबू छात्रावास में आ गये। छात्रावास में कुल पचास कमरे थे। हर कमरे में दो छात्र थे। कुछ अन्‍य छात्रावास भी थे। अभिमन्‍यु को छात्रावास तथा विद्यालय का वातावरण भा गया। उसे नौकरी मिलने की खुशी तो थी ही इस मनोरम और स्‍वच्‍छ स्‍कूल के वातावरण को देखकर और ज्‍यादा खुशी हुई।

रामलाल सामान रखकर जा चुका था। अभिमन्‍यु ने छात्रावास के चौकीदार को बुलाया। अपना आवास साफ कराया। नहा धोकर तरोताजा हो गया। अब तक छात्रावास में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी कि नये अधीक्षक विज्ञान के अध्‍यापक भी हैं और उन्‍होंने अपना काम संभाल लिया है। अभिमन्‍यु ने छात्रावास के छात्रों को अपने कक्ष में उपस्‍थित होने के निर्देश दिये। सभी छात्र आज यथाशीघ्र अपने गणवेश में नये अधीक्षक से मिलने के लिए आ गये। अभिमन्‍यु ने देखा सभी छात्र मध्‍यम वर्गो से आये हुए थे। कुछ पढ़ाई में तेज थे, तो कुछ खेलकूद में और कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रूचि रखते थे।

छात्रावास की व्‍यवस्‍था सुचारु रूप से चलाने के लिए अभिमन्‍यु ने सर्वप्रथम हर पच्‍चीस छात्रों पर एक मॉनीटर तथा चार मॉनीटरों पर एक प्रोक्‍टर नियुक्‍त करने की बात कही, सभी छात्रों ने इसे सहर्ष स्‍वीकार कर लिया। विंग अ का मॉनीटर अभिमन्‍यु ने पढ़ाई में सबसे तेज छात्र लिम्‍बाराम को बनाया। विंग ‘‘ब'' का मॉनीटर असलम को बनाया गया, जो खेल-कूद में होशियार था। और विंग ‘‘स'' का मॉनीटर सुरेश शर्मा को बनाया विंग ‘‘द'' का मॉनीटर राजेन्‍द्र सक्‍सेना को बनाया गया। इन मॉनीटरों पर विंग के छात्रों की जिम्‍मेदारी डाली गयी। उसने शारीरिक दृष्टि से सबसे सुदृढ़ अवतारसिंह को जो सबसे उँची कक्षा का विद्यार्थी था प्रोक्‍टर नियुक्‍त कर दिया।

अब छात्रों को सम्‍बोधित करते हुए कहा-

‘‘ प्रिय छात्रों, मैं आपका अध्‍यापक या छात्रावास का अधीक्षक मात्र नहीं हूं बल्‍कि आपका स्‍थानीय अभिभावक भी हूं। आप अपनी किसी भी समस्‍या के निराकरण हेतु कभी भी मेरे पास निस्संकोच आ सकते हैं। मेरी कोशिश होगी कि आपकी समस्‍या का समाधान हो तथा आप अपना पूरा समय पढ़ाई तथा अन्‍य गतिविधियों में लगा सकें। पिछले कुछ वर्षो से यह विद्यालय जिले में अव्‍वल आता रहा है, मेरी कोशिश होगी कि यहां के छात्र पढ़ाई, खेलकूद तथा सांस्‍कृतिक सभी क्षेत्रों में अपना वर्चस्‍व स्‍थापित करें।''

अचानक अभिमन्‍यु ने देखा कि प्राचार्य महोदय भी चुपचाप आकर पीछे खड़े हो गये हैं एक क्षण को उसने अपना वक्‍तव्‍य बन्‍द किया मगर उनकी मौन अनुमति पाकर वह पुनः बोलने लगा।

'' मित्रों। आज जीवन में सभी चीजों का महत्‍व है। न केवल पढ़ाई, न केवल खेलकूद बल्‍कि हर क्षेत्र में काम करना पड़ता है हमारे इस छात्रावास में सभी प्रकार के छात्र है और हम सभी को समान अवसर देकर आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे। मेस की व्‍यवस्‍था के लिए भी एक समिति बना दी जायेगी। जो ठेकेदार के काम की देखरेख करेंगी।

यह कहकर अभिमन्‍यु ने प्राचार्य की ओर देखा। और कहा।

'' प्राचार्य जी भी आपसे कुछ बातें करेंगे। ‘‘

प्राचार्य ने कहा-''छात्रों अभिमन्‍यु बाबू के रूप में आप लोगों को एक नये, उत्‍साही अध्‍यापक मिले हैं, जो पूरी लगन तथा मेहनत से आपके साथ कंधे से कंधा भिड़ाकर काम करेंगे और मुझे विश्‍वास है कि आप विद्यालय की गरिमा को और उंचा करेंगे। मेरी शुभकामनाएं आपके और अभिमन्‍यु बाबू के साथ हैं। कल से नियमित सत्र तथा अध्‍यापन शुरू हो जायेगा। आप लोग कल सुबह 10 बजे विद्यालय प्रांगण में एकत्रित हो वहीं पा आगे बातचीत होगी। ‘‘

यह कहकर प्राचार्य ने अभिमन्‍यु बाबू को छात्रावास की मीटिंग समाप्‍त करने की आज्ञा दे दी।

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विद्यालय का पहला दिन। विद्यालय के स्‍टाफ रूम में सभी अध्‍यापक व अध्‍यापिकाएँ उपस्‍थित हैं। लगभग 30 अध्‍यापक व 3 अध्‍यापिकाएँ प्राचार्य स्‍वयं भी आज अपने कक्ष के बजाय यहीं पर आ गये हैं छात्र विद्यालय प्रांगण में एकत्रित हो रहे हैं।

प्राचार्य ने अभिमन्‍यु बाबू का परिचय अन्‍य साथी अध्‍यापकों एवं अध्‍यापिकाओं से कराया। सभी ने अभिमन्‍यु बाबू को हाथों हाथ लिया। अभिमन्‍यु बाबू के सौम्‍य व शालीन व्‍यक्‍तित्‍व से सभी प्रभावित थे। एक दो अध्‍यापक इस बात से दुखी थे कि वे छात्रावास के अधीक्षक नहीं बन सकें। मगर बात बिगड़ी नहीं थी। सब ठीक था। प्रांगण में छात्र पंक्‍तिबद्ध खड़े थे। प्रार्थना शुरू हुई। पी․टी․ हुई प्राचार्य ने छात्रों व अध्‍यापकों का स्‍वागत किया। उद्‌बोधन दिया। उन्‍हें देश के श्रेष्ठ नागरिक बनने की नसीहत दी। प्रजातान्‍त्रिक मूल्‍यों के बारे में बताया और फिर नियमित कक्षा में पढ़ने को भेज दिया। अभिमन्‍यु बाबू के शुरू के दो कालांश खाली थे। इस समय का सदुपयोग उन्‍होंने साथी अध्‍यापकों से परिचय में गुजारा। अंग्रेजी पढ़ाने वाले एंग्‍लो इण्‍डियन अध्‍यापक थे एन्‍टनी। गणित के अध्‍यापक थे महेश गुप्‍ता। हिन्‍दी की अध्‍यापिका मिसेस प्रतिभा और कॉमर्स के अध्‍यापक चन्‍द्र मोहन शर्मा थे। कुछ अन्‍य अध्‍यापक भी थे।

एक बात अभिमन्‍यु को लगी कि हो न हो विद्यालय के अध्‍यापकों में गुटबाजी जरूर होगी। लेकिन उसने इस ओर ध्‍यान देने के बजाय अपने अध्‍यापन कार्य हो ही प्राथमिकता देना उचित समझा। पीरियड लग चुका था। वह हाजरी रजिस्‍टर, चाक, डस्‍टर लेकर कक्षा दस के कक्ष की ओर चल पड़ा। आज कक्षा में उस का पहला दिन था और वो मानता था कि प्रथम दिन पूरी मेहनत से अपना प्रभाव जमाना पड़ता है। उसने आत्‍मविश्‍वास के साथ पड़ाना शुरू किया, छात्र दत्‍तचित्‍त हो कर उसका व्‍याख्‍यान सुन रहे थे। कालांश की समाप्‍ति पर वह पुनः स्‍टाफ रूम में आ गया।

सूरज ढलने लगा था। धूप के टुकड़े खिड़की के रास्‍ते अभिमन्‍यु के चेहरे पर पड़ रहे थ। उसका चेहरा संतोष के सुख से जगमगाने लगा था। वह उठा, सुराही से पानी पिया और पुस्‍तकालय की ओर बढ़ गया।

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जैसे ही ट्रेन मुड़ी‘ अन्‍ना अचकचा कर धक्‍के से हिली। जागी। खिड़की के बाहर हल्‍की रोशनी हो रही थी। सुबह का मनोरम वातावरण बन रहा था। गाड़ी मद्रास से थोड़ी ही आगे आई थी अब गाड़ी तीस घण्टों से ज्‍यादा चल चुकी थी।

गाड़ी में चौतरफा बन्‍द दीवारों के अन्‍दर बन्‍द वे दोनों। दूसरी सहयात्री अन्‍ना के लिए अजनबी, थी। कितना आश्‍चर्य, साथ साथ लेकिन अलग-अलग। एक दूसरे के लिए अजनबी, शुरू में सहयात्री ने कुछ आगे बढ़ने की कोशिश की थी लेकिन अन्‍ना की उपेक्षापूर्ण हां, हूं से निराश होकर सो गई थी।

सोई हुई महिला को देख कर उसने मुंह बिचकाया। वह तौलिया ले बाथरूम में घुस गई फ्रेश होकर बाहर आई तो गाड़ी दिल्‍ली के पास कहीं रुकी पड़ी थी। वह यादों के धुँधलके में खोने लगी।

उसे याद आये पापा,मम्‍मी। पिछले साल का यूरोप का टिप। महानगरों की जिन्‍दगी। कॉलेज के दिन। पापा उसे बताते थे महाराणा प्रताप का बलिदान और स्‍वतन्‍त्रता संग्राम में राजस्थान का योगदान। उनके अनुसार भारत में शिवाजी और प्रताप का कोई सानी नहीं था। बिजोलिया का किसान आन्‍दोलन, जैसलमेर के सागरमल गोपा का बलिदान जोधपुर के पैलेस और पुराने कवियों के कवित्‍त। चतरसिंहजी बावजी की सिखावन, राजिया रा दूहा। मीरा ओर बिहारी की धरती पर वह पहली बार पांव रखने जा रही थी। कैसा होगा राजस्‍थान ? कैसी होगी उदयपुर की पहाड़ियाँ, जैसाणा और जोधाणा की रम्‍मतें।

उसने सर को हल्‍का सा झटका दिया यादों के धुँधले आसमान के क्षितिज पर फिर एक लाल सूरज डूबने लगा।

गाड़ी चलने लगी उसके यादों के सितार पर फिर उंगलियां दौड़ने लगी। रागों की एक अजनबी पहचान उसे महसूस होने लगी। क्‍या करेगी वह राजस्‍थान जाकर। अपनी पुरखों की माटी को सर पर लगा लेने से ही क्‍या हो जायेगा। क्‍या उसे मन की शान्‍ति मिल पायेगी। क्‍या उसे घुटन से मुक्‍ति मिल पायेगी। लेकिन अब वो कर ही क्‍या सकती थी ?

कभी अमेरिका में, कभी यूरोप में कभी भारत में और अब अपनी मातृभूमि के सहोदरों के बीच। यह कैसी प्‍यास है जो बुझती नहीं बढ़ती ही चली जाती है क्‍या कोई नदी कभी तृप्‍त होती है। बाढ़ के बावजूद नदी की प्‍यास क्‍यों नहीं बुझती।

दोपहर का सूरज तेज हो रहा था। गाड़ी जयपुर स्‍टेशन पर आकर रुकी उसने अपना झोला उठाया और प्‍लेटफार्म के बाहर आ गई।

उसने अपने मन में एक नई खुशी महसूस की कि मम्‍मी पापा की लाड़ली बेटी फिर एक महानगर की विशाल सड़कों पर अपनी जड़ों की खोज में भटकने लगी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था अब वह क्‍या करेगी। अकेलापन। भटकाव। उलझाव। फिर भटकाव। क्‍या भटकाव ही जिन्‍दगी है। या कोई एक अनिवार्यता, जीवन की सार्थकता की खोज में भटकाव। बस भटकाव, उसे फिर याद आया, अनन्‍त की खोज में, जीवन एक बिन्‍दु है। और इस बिन्‍दु से होकर समस्‍त बिन्‍दु संसरण करते हैं यह संसरण के बिन्‍दु की खोज ही भटकाव है। भटकाव ही अनिवार्यता है। सच पूछा जाये तो क्‍या जीवन की खोज रिश्‍तों की उष्णता की खोज की एक चाह नहीं है।

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वह शहर के दक्षिणी भाग की और चल पड़ी। सामने विश्‍वविद्यालय की लम्‍बी, उँची बहुमंजिली इमारतें दिखाई दे रही थी। शिक्षा, सृजन और शैक्षणिक दुनिया का एक अनन्‍त विस्‍तार या सुनहरी रेत के पार का संगीत की धाराओं का अनोखा मिलन। दूर तक फैली मासूम धरती। सुहागन की गोद में सोया हुआ मासूम जगत। इस शांत पड़ी झील के तट पर। प्‍यास का अन्‍तहीन सिलसिला। प्‍यास केवल प्‍यास। जिसके बुझने की आस कभी नहीं रही मेरे पास। सृजन का सुख या समर्पण का अनोखा संसार। धाराओं के धोरी और आग उगलता विस्‍तार शिक्षा जगत का, जहां से भाग कर वो यहां पर आई है। अन्‍ना समझ नहीं पा रही । इस के आगे का अन्‍तहीन विस्‍तार उसे किस मोड़ तक पहुंचा देगा। क्‍या यह सम्‍भव है कि वो अतीत की परतें खोले बिना आगे बड़ जाये। मां बचपन में चल बसी पिता व्‍यापार और पैसे में व्‍यस्‍त। उसका अकेलापन भटकाव बढ़ाता ही चला जा रहा था।

वह एक नई राह पर चल पड़ी सामने केन्‍द्रीय पुस्‍तकालय था। शाम अलसाने लगी, एक चिरपरिचित गन्‍ध की तरह शाम ढलने लगी धूप के कुछ टुकड़े खिड़की की राह से अन्‍दर हॉल में आकर चुपचाप बैठ गये। कुछ चिड़ियाएं भी न जाने कहां से अन्‍दर घुस गई थी। वह यो ही मन को समझाने हेतु अन्‍दर हाल में आ गई।

इधर-उधर दीवारों पर एक उदास भूरा रंग। धूसरे धूसरे चेहरे और एक उदास मुस्‍कान। उसने अपना सर एक सचित्र पत्रिका में गड़ा दिया।

तभी उसे किसी की आवाज सुनाई पड़ी।

'' हैलो।‘‘ उसने चौंक कर सिर उठाया। एक अजनबी लेकिन मोहक लड़की उसे सम्‍बोधित कर रही थी।

'' नई आई हो।‘‘

'' हां ‘‘

'' एम․ए․ करने। ‘‘

'' नहीं। ‘‘

'' तो फिर‘‘

'' फिर । ‘‘

'' फिर। ‘‘

और दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ी।

'' तुम्‍हारा नाम। ‘‘

'' अन्‍ना और तुम्‍हारा। ‘‘

'' आशा। ‘‘ लगा जैसे सैकड़ों नन्‍हे सूरज एक साथ उग पड़े हों, या कि चांदनी जाग गई हो। वह समझ नहीं पाई अचानक हुई इस मुलाकात का क्‍या होगा। लेकिन बात बन गई। उसे फिर याद आया। सुबह की ताजा धूप के टुकड़ों को जी लो। पता नहीं कब चांद घाटी में चरने चला जाये। क्‍वारेपन की कच्‍ची धूप उस लड़की की आंखों में टिमटिमा रही थी उसका मन बोराएं पक्षी की तरह फड़फड़ा रहा था। वह नहीं समझ पायी की क्‍या करें मगर वृक्ष में फड़फड़ाती हवाएँ रास्‍ता ढूंढ़ रही थी और वे एक दूसरे को जानने समझने के लिए केन्‍टीन की ओर बढ़ गई। अन्‍ना के लिए यह गाढ़ी और सूखी धुन्‍धनुमा धूप थी। केन्‍टीन के एकान्‍त कोने में दोनों जम गई।

आसपास की मेजें भी भरी पड़ी थी। चिड़ियों की तरह चहचहाती लड़कियां और मंडराते लड़के। कहीं कोई चिन्‍ता या भटकाव या उलझाव का नाम नहीं।

‘‘ हां तो अब बताओ अपनी राम कहानी। '' यह कह कर आशा फिर खिलखिला कर हंस पड़ी। पहली बार अन्‍ना ने उसे ध्‍यान से देखा। सुर्ख तांबई रंग, हलके घुँघराले बाल। मुंह पर अनोखा तेज और हंसती बोलती आंखें। शायद जमाने की धूप और सर्द हवाओं से उसका चेहरा अभी बचा हुआ था।

‘‘ क्‍या बताउं। मेरे डैड ने मुझे अपनी जन्‍म भूमि राजस्‍थान देखने को भेजा है। मां बचपन में ही चल बसी। डैड ने ही पाल पोस कर इतना बड़ा किया समाज विज्ञान में एम․ए․ हूं। देश-विदेश घूमी। मगर मन है कि भटकता ही रहता है। पहाड़ों में, मैदानों में, दिशाओं में मैं इस भटकाव को ढूंढती फिरती हूं। इस बार अपनी जन्‍म भूमि देखने आई थी स्‍वर्गादपिगरीयसी यह भूमि कैसी है, रेत के टीबे या जिन्‍दगी की रोशनी या फिर बैलगाड़ियों और ऊँटों के काफिले। ''

‘‘ अच्‍छा। अच्‍छा बन्‍द कर अपनी कविता और सुन मेरी। ''

‘‘ अरे हाँ मैं तो भूल गई थी कुछ अपने बारे में भी तो बता। ''

मैं अपने बड़े भाई के साथ यही यूनिवर्सिटी क्‍वार्टर्स में रहती हूं। केमेस्‍ट्री में एम․एस․सी․ कर रही हूं और भैया यहीं समाजविज्ञान के प्रोफेसर हैं। ''

‘‘ अच्‍छा। '' फिर तो तुम्‍हारे भैया से मिलना चाहिए। ''

‘‘ लो पहले चाय पीलो। चाय ठण्‍डी हो रही है। ''

‘‘ अच्‍छा भाई। चलो जयपुर में कुछ सुकून मिल जायेगा। ''

‘‘ अच्‍छा एक बात बताओ यूरोप तुम्‍हें कैसा लगा। ''

‘‘ बस कुछ ज्‍यादा पसन्‍द नहीं आया। सीमित दिमाग और सीमित जीवन सब कुछ स्‍वयं में सिमटा हुआ। दीन-दुनिया से कटा सा। ''

‘‘ सिमटा हुआ जीवन भी कोई जीवन है। हमारे देश में सब कुछ विस्‍तृत और महान्‌। इस महान देश की परम्पराएं भी महान हैं। ''

‘‘ तो कब तक रहेगी यहाँ ? ''

‘‘ जब तक मन लग जाये। शायद पूरा जीवन या कल सुबह ही चली जाउं। कहना मुश्‍किल है। रमता जोगी और बहते पानी की तरह है मेरा मन। पल में तोला और पल में माशा। फिर भी शायद यहां पर कुछ समय तक रह जाउंगी। अच्‍छा तुम्‍हारे भाई से कब मिलाओगी। ''

‘‘ तुम कहां ठहरी हो। ''

‘‘ स्‍टेशन के पास के होटल में। ''

‘‘ ऐसा कर तू घर ही आ जा। ''

‘‘ लेकिन। ''

‘‘ लेकिन, लेकिन क्‍या। पूरा बड़ा क्‍वार्टर है और हम केवल दो। '' ‘मैं ओर भाईजान। ''

‘‘ ठीक है। ''

 

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(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)

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रचनाकार: यशवन्त कोठारी का किशोरों के लिए उपन्यास : नया सवेरा
यशवन्त कोठारी का किशोरों के लिए उपन्यास : नया सवेरा
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