जिन वेगस नहीं वेख्या...

SHARE:

यात्रा वृत्तांत आंखन देखी (अमरीका मेरी निगाहों से) ( अनुक्रम यहाँ देखें ) - डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल   13 - ज़िन्दगी के साथ भी , ज़िन...

यात्रा वृत्तांत


आंखन देखी (अमरीका मेरी निगाहों से)

(अनुक्रम यहाँ देखें)

- डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल

 

13 - ज़िन्दगी के साथ भी, ज़िन्दगी के बाद भी !1

 

अमरीकी समाज में इंसानी जान को कितनी अहमियत दी जाती है, इसकी चर्चा मैं एकाधिक बार कर चुका हूं. अस्पताल में तो रोगी पर पूरा ध्यान दिया ही जाता है, पूरी की पूरी जीवन पद्धति ही ऐसे सांचे में ढाल दी गई है कि जिन-जिन-बातों से आपकी जान को खतरा हो, उन पर यथासम्भव नियंत्रण किया जाए. यातायात विभाग सतत प्रयास करता है कि दुर्घटनाएं कम हों, सड़कों पर यातायात इस तरह नियंत्रित व संचालित किया जाता है कि तेज़ गति के बावज़ूद दुर्घटनाओं की आशंका न्यूनतम रह गई है. पत्र-पत्रिकाओं में, संचार माध्यमों में लगातार खतरों के निवारण पर चर्चा होती है और सलाहें दी जाती हैं.

मनुष्य की आज़ादी को यहां बहुत महत्व दिया जाता है. प्रजातंत्र है भी यही कि हरेक को अपनी तरह से जीने का अधिकार मिले. लेकिन यह अधिकार जीवन के साथ ही क्यों समाप्त हो जाए? उसके बाद भी क्यों न बरक़रार रहे ?

शायद इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए अमरीकी समाज और कानून व्यक्ति को यह अधिकार भी प्रदान करता है कि वह अपनी अंतिम सांस कैसे ले! मेडिकल टैक्नोलॉजी ने मनुष्य को अनेक विकल्प दे दिये हैं कि वह जीवन बचाने कि लिये कैसे और कितना संघर्ष करे. कानून उसे अधिकार भी देता है कि वह जीवन रक्षक यंत्रों, दवाइयों, सुईयों, मॉनीटर्स आदि से बंधा- घिरा अंतिम सांस ले या सब कुछ ऊपर वाले के हाथ छोड़, बिना संघर्ष और प्रतिरोध के मृत्यु का वरण कर ले. अमरीकी समाज तो मनुष्य को यह अधिकार भी देता है कि यदि वह चाहे तो अंतिम समय में अस्पताल में जाए ही नहीं, या ले जाया ही न जाए.

यहां लोगों को सलाह दी जाती है कि वे बुढ़ापे का इंतज़ार किये बगैर एक सम्पूर्ण दस्तावेज़ समूह तैयार करें जिसमें यदि वे 'उस' समय अपनी बात कह सकने में असमर्थ भी हों तो उनकी इच्छा का पालन करने की गरिमा बरती जा सके. इस दस्तावेज़-समूह में एक ‘ड्यूरेबल पॉवर ऑफ अटर्नी फॉर हेल्थ’ (Durable power of attorney for health- DPOA) होता है जो किसी व्यक्ति को यह अधिकार प्रदान करता है कि आपके बोल न पाने की स्थिति में आपकी ओर से चिकित्सा विषयक निर्णय ले. इसी के साथ एक निर्देश चिकित्सक के नाम होता है कि आप अपनी जीवन रक्षा के लिये किन-किन उपायों का इस्तेमाल करना या नहीं करना चाहते हैं. इसे ज़िन्दा वसीयत भी कहा जा सकता है. आपकी इन बातों का अक्षरशः पालन हो, इसके लिये लोगों को यह सलाह दी जाते है कि यदि वे गम्भीर रूप से बीमार हैं तो एक अन्य फॉर्म (जिसे POZSTकहा जाता है) पर भी हस्ताक्षर कर व कराकर रखें. वस्तुतः यह चिकित्सक द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित आदेश होता है जो आपके निर्णय की पूर्ण पालना को वैधता प्रदान करता है. अगर यह फॉर्म बाकायदा भरा हो तो मृत्यु के बाद , सन्दिग्धावस्था में की जाने वाली पुलिस कार्रवाई से निज़ात मिल जाती है.

अमरीकी समाज भारतीय समाज से बहुत अलग है. इसीलिये यहां बूढ़े मां-बाप की परवाह के लिये सलाह देने वाली किताबें भी काफी लिखी-छापी-बेची जाती हैं. और, इस विषय पर ही क्यों, यहां तो हर विषय को ही सिद्धांत का जामा पहना दिया जाता है. बच्चे कैसे पालें, दादा-दादी,नाना-नानी क्या करें-क्या न करें से लेकर दादा-दादी नाना-नानी के लिये क्या करें तक सब कुछ. वर्जीनिया मॉरिस की एक बहुत प्रसिद्ध किताब है - 'बूढ़े मां बाप की देखभाल कैसे करें.' इस किताब में यह तक बताया गया है कि यदि बूढ़ा/बुढ़िया स्वर्ग सिधार जाए तो हड़बडाहट की कोई ज़रूरत नहीं है. आप चाहे तो रोएं, चाहे तो स्वर्गीय का हाथ थाम कर उनसे मौन सम्वाद करें, चाहे प्रार्थना करें. ये सारी सलाहें किताब में हैं.

जो लोग किसी असाध्य रोग से ग्रस्त होते हैं और जिनके जीवन के चन्द ही दिन शेष बचे होते हैं उनके लिये यहां एक अलग सेवा- Hospice भी सुलभ है. यह सेवा न तो ज़िन्दगी को बढ़ाने का प्रयास है न मौत को नज़दीक लाने का. इस सेवा में यह अवधारणा निहित है कि जितनी भी ज़िन्दगी बची है उसे गरिमापूर्वक तथा सम्बद्ध व्यक्ति की इच्छानुसार बिताने दिया जाए. महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सेवा को केवल अंतिम सांसें गिन रहे व्यक्ति तक ही सीमित नहीं रखा गया है. उसके परिवार जन को भी इसमें शामिल किया गया है. जयपुर के संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल वालों की अवेदना आश्रम सेवा से कुछ-कुछ साम्य रखती यह सेवा प्रशिक्षित स्वयंसेवकों के माध्यम से अत्यधिक सम्वेदनशील तरीके से व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक सभी ज़रूरतों को पूरा करने की सर्वांगपूर्ण सेवा व्यवस्था है.

मृत्यु के बाद पुलिस (911) को फोन किया जाता है. पुलिस आती है पूरी गरिमा के साथ. बिना चमचमाती लाल लाइटों और बिना सायरन बजाते. अन्यथा स्थिति में चमचमाती लाल बत्ती और बजता हुआ सायरन आम है. लोगों को यह भी बताया जाता है कि पुलिस इस कॉल को इमर्जेंसी नहीं मानती है, इसलिये उसके आने में किंचित विलम्ब भी हो सकता है. देखिये है न बड़ी बात! पुलिस को बुलायेंगे तो उसका तुरंत आना निश्चित है. थोड़ा विलम्ब भी होना है तो आपको बताकर ही होना है. यदि पुलिस आश्वस्त है कि मृत्यु स्वाभाविक है तो वही स्वर्गस्थ व्यक्ति के चिकित्सा अधिकारी तथा मेडिकल एक्ज़ामिनर्स ऑफिस से सम्पर्क कर मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार कराएगी. अंतिम संस्कार के लिये यहां व्यावसायिक प्रतिष्ठान (Funeral homes) होते हैं.परिवार जन को उनसे सम्पर्क कराने में भी पुलिस ही मदद करती है. यह है पुलिस की असल 'मेरे योग्य सेवा' भूमिका.

मुझे बड़ी बात यह लगती है कि यह समाज जीवन की ही नहीं, जीवन के बाद की चिंता भी उतनी ही शिद्दत से करता है.

********************

------------------------------------------------------------------------------------------

1. शीर्षक भारतीय जीवन बीमा निगम के विज्ञापन से, साभार!

-------------

 

14 - जिन वेगस नहीं वेख्या...

उर्फ

लास वेगस रहेगा याद1

 

वायुयान ने जैसे ही मैक-कैरन के छोटे-से हवाई अड्डे से उड़ान भरी, नीचे रंग-बिरंगी रोशनी का आंचल लहराने लगा. यह एक ऐसा दृश्य था जिसे मैं जब भी याद करूंगा, वाणी और शब्दों की असमर्थता महसूस करूंगा. रोशनियां थीं लास वेगस की, जहां तीन दिन बिताकर हम सिएटल लौट रहे थे. सचित्र पत्रिकाओं-किताबों में और टीवी-फिल्म के पर्दे पर इन रोशनियों को पहले भी देखा था और यह भी जाना सुना था कि लास वेगस जगमगाता है, पर जगमगाहट ऐसी होगी यह तो कल्पना से परे ही था. मुझे तो उद्धव वाले सूरदास बुरी तरह याद आ रहे थे: ‘एक हुतो सो गयो श्याम संग....’. मेरा मन तो वेगस के पास ही रह गया था.

वायुयान काफी ऊपर उठ चुका था. रोशनियां धीरे-धीरे एक बिन्दु में तब्दील होकर अंधेरे में विलीन होने को थीं और मैं सोच रहा था....

सोच रहा था कि अगर चारु-मुकेश के लास वेगस भ्रमण के प्रस्ताव को स्वीकार न किया होता तो मैं कैसे अनुभव से वंचित रह गया होता! वायुयान काफी ऊपर उठ चुका था. रोशनियां धीरे-धीरे एक बिन्दु में तब्दील होकर अंधेरे में विलीन होने को थीं और मैं सोच रहा था....

जब इन लोगों ने कहा कि हम किसी सप्ताहांत लास वेगस घूम आयें, तो सच कहूं, मैं क़तई उत्साहित नहीं था. लास वेगस के बारे में जितना जानता था उससे मुझमें वहां जाने की कोई ललक नहीं थी. ऐसा शहर जो अपने जुआघरों (Casinos)के लिये विख्यात है, भला मुझे कैसे आकृष्ट करता? मुझे तो ताश तक खेलना नहीं आता. दिलचस्पी ही नहीं है. कभी दिवाली पर रस्म अदायगी तक के लिये भी जुआ नहीं खेला. मुझे भला लास वेगस क्यों जाना चाहिये? चारु ने बताया कि वहां बड़े-बड़े होटल हैं. खूब दर्शनीय! मैं सोचता रहा, होटल का क्या देखना? अपने उदयपुर का लेक पैलेस, जयपुर का क्लार्क्स आमेर, दिल्ली का अशोका और मुम्बई का ताज देखा तो है. आखिर होटल में होगा क्या? वही लॉबी, स्विमिंग पूल, शॉपिंग आर्केड वगैरह ना? हुंह! यह भी मन में था कि तीन दिन करेंगे क्या? ऊपर से यह जानकारी भी कि लास वेगस नेवाडा के घोर रेगिस्तान में है, इन दिनों बेतहाशा गर्मी पड़ रही है वहां. बेटी-दामाद ने लास वेगस की स्ट्रिप की तारीफ की, फ्रेमोण्ट स्ट्रीट का गुणगान किया, रोशनियों की तारीफ की. मैं, कुए का मेंढक, अपने उदयपुर-जयपुर की गलियों-बाज़ारों की दिवाली की रोशनी को सजावट की पराकाष्ठा मानता हुआ इनकी बातों से खास उत्साहित नहीं हुआ.

पर अब मन ही मन इस बात पर अपनी पीठ थपथपा रहा था कि बहुत अच्छा किया जो न जाने की ज़िद्द पर न अड़ा. अगर न गया होता, जीवन के एक अद्वितीय तथा अविस्मरणीय अनुभव से वंचित ही रह गया होता. लास वेगस जाकर ही महसूस किया कि शब्दों और तस्वीरों से आगे भी बहुत कुछ होता है. सब कुछ को अभिव्यक्त कर देने की सामर्थ्य इनमें भी नहीं है. जो आपकी आंखें देख सकती हैं वह कोई और आप तक पहुंचा ही नहीं सकता. तभी तो बाबा तुलसीदास कह गये हैं- ‘गिरा अनयन, नयन बिनु वाणी’, यानि जिह्वा देख नहीं सकती और नयन देख सकते हैं पर बोल नहीं सकते. उस फिल्मी गीत में भी तो यही बात है - ‘ना ज़ुबां को दिखाई देता है, ना निगाहों से बात होती है’.

आखिर ऐसा क्या था लास वेगस में कि मुझे असगर वज़ाहत के प्रसिद्ध नाटक 'जिस लाहौर नहीं देख्या, ओ जनम्या ही नहीं' से अपने इस लेख का शीर्षक उधार लेना पड़

गया?

सारी दुनिया लास वेगस आती है. जिस हवाई अड्डे से हम लास वेगस पहुंचे थे वह विश्व का 12 वां व्यस्ततम हवाई अड्डा है. पिछले वर्ष कोई साढ़े तीन करोड़ लोग इस हवाई अड्डे से वेगस आये थे (मज़े की बात यह कि वेगस की अपनी आबादी महज़ पांच लाख है!). लास वेगस को विश्व की मनोरंजन राजधानी (Entertainment Capital of the World) कहा जाता है. लास वेगस में चौबीसों घण्टे वह नज़ारा रहता है जो हमारे देश में कुछ-कुछ दिवाली की शाम 8-9 बजे रहा करता है. यानि चकाचौंध और ऐसी भीड़-भाड़ कि बस सर ही सर दिखाई दें, ज़मीन नहीं. इस शहर की पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन, मनोरंजन और जुआघरों पर टिकी है. लास वेगस निश्चय ही कैसिनोज़ यानि जुआघरों का शहर है. शेष सब कुछ उन्हीं के इर्द-गिर्द बुना गया है. जुआघरों का आलम यह कि हवाई अड्डे पर उतरते ही लाउंज में सबसे पहले आपका सामना स्लॉट मशीनों (जिनमें सिक्के डाल कर किस्मत आजमाई जाती है) से ही होता है. हर होटल में जुआ खेलने की बे-इंतिहा(यानि हज़ारों) मशीनें लगीं हैं. किसम-किसम की, और अलग-अलग दरों तथा इनामों वाली. न्यूनतम दर 25 सेण्ट (डॉलर की चवन्नी, साढ़े बारह रूपये के बराबर) और अधिकतम? जितना आप सोच सकें उससे भी कई गुना ज़्यादा! केवल स्लॉट मशीनें ही नहीं, रूलट भी (जिनमें गोलाकार में एक चक्र घूमता है), और ब्लैक जैक टेबल्स भीं. पोकर टेबल्स भीं, और भी इसी तरह का बहुत सारा तामझाम. ऐसे दृश्य हम सबने हिन्दी फिल्मों में ज़रूर ही देखे हैं. मशीनों और टेबलों पर जुटे स्त्री-पुरुष. खेलने वालों के हाथों में सिगरेट,सिगार, बीयर, वाइन या कोई और ड्रिंक. खेलने वालों को ड्रिंक मुफ्त. ड्रिंक सर्व करती हुई चुस्त वेट्रेसेज़ - इतने कम कपडों में कि आपको अपनी कल्पना को ज़रा भी ज़हमत न देनी पड़े. वेट्रेसेज़ की सज-धज होटल की थीम के अनुरूप, यानि पेरिस में फ्रेंच और लक्सर में मिश्री. कैसिनो में पूरा उन्मुक्त वातावरण, पर अमरीका के इस कानून का अक्षरशः पालन कि 18 वर्ष से कम के लोग जुआ नहीं खेल सकते. इस हद तक पालन कि गोद के शिशु को लेकर भी आप किसी मशीन या टेबल के पास नहीं रुक सकते. हम दर्शक थे, नव्या(4 माह) जिसकी भी गोद में होती उसे बस चलते रहना होता था, एक क्षण भी कहीं रुके नहीं कि कोई न कोई सुरक्षाकर्मी आकर टोक देता. कानून का उल्लंघन करने पर सज़ा का प्रावधान है, और हमने देखा कि खुद होटल वाले भी कानून का पालन करने-कराने में पूरी-पूरी दिलचस्पी रखते हैं. निश्चय ही ये कैसिनो लास वेगस के सबसे बड़े आकर्षण हैं. दुनिया भर से लोग अपनी किस्मत आज़माने यहां आते हैं और अगर विभिन्न जुआघरों में लगे सूचना पट्टों पर विश्वास करें तो ज़ीरो से सुपर हीरो बनकर लौटते हैं. लेकिन वेगस का सारा आकर्षण इन जुआघरों तक ही सीमित नहीं है.

लास वेगस का असल आकर्षण तो है 'द स्ट्रिप' (The Strip) यानि वह लम्बी सड़क जिसके दोनों तरफ कोई 36 होटल बने हैं. अब होटल कहने सुनने से जो तस्वीर मन में बनती है, बराय महरबानी उसे एकदम से मिटा दीजिये. जब मैं कहूं 'होटल', आप सुनिये 'शहर'. जी हां, इनमें से हरेक होटल अपने आप में एक शहर ही है, वह भी मुख्तलिफ मुल्क का. इतना विशालकाय कि अगर आप पूरा दिन उसमें भागते-दौड़ते घूमें तो भी देखने को बहुत कुछ बचा ही रह जाए. इनमें से हर होटल किसी एक थीम (Theme) पर निर्मित है. जैसे लक्सर मिश्र के पिरामिड्ज़ की थीम पर तो अलाद्दीन (जिसमें हम ठहरे थे) अरेबियन नाइट्स पर; एम जी एम ग्रैण्ड हॉलीवुड के इसी नाम के प्रसिद्ध स्टूडियो के आधार पर तो सीज़र्स पैलेस जूलियस सीज़र के जीवन और समय पर. पेरिस और न्यूयार्क-न्यूयार्क के नाम ही उनकी थीम का खुलासा कर देते हैं. इसी तरह हर होटल को बनाया-बसाया गया है. जब आप पेरिस होटल में घुसते हैं तो सब कुछ फ्रांस जैसा होता है- गलियां, उनके नाम, दुकानें, होटलों के मेन्यू, व्यंजन, सर्व करने वाले बैरों की वेशभूषा, यहां तक कि जुआ खेलने की मशीनें भी फ्रांस की ही विभिन्न चीज़ों के आधार पर. और यह साम्य इतना आगे तक जाता है कि पेरिस का आइफेल टावर भी यहां लाकर खड़ा कर दिया गया है. उसकी खिलौना प्रतिकृति नहीं (वे तो स्मृति चिह्नों की दुकानों में बिकती ही हैं) बल्कि पूरी 50 मंज़िला, 540 फिट ऊंची हू-ब-हू आइफेल टावर. वैसे यहीं यह बता दूं कि असली टावर की ऊंचाई इससे करीब दुगुनी यानि 1051 फीट है. एक पारदर्शी एलिवेटर 340 फीट प्रति मिनिट की रफ्तार से आपको इस टावर के लगभग शीर्ष (500 फिट) पर ले जाता है और वहां से लास वेगस का जो नज़ारा आप देखते हैं, वह आपको कहने को विवश कर ही देता है-‘जिन वेगस नहीं वेख्या..’ उस दृश्य को शब्दों में बयान किया ही नहीं जा सकता. जगमगाती स्ट्रिप और चमचमाते होटल. पर ये शब्द तो बहुत मामूली हैं, जबकि नज़ारा निहायत ही गैर-मामूली है. इस पेरिस होटल में 2916 कमरे हैं.

जिस होटल अलाद्दीन में हम ठहरे, उसकी विशालता का कुछ अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि उसमें 2567 कमरे थे, एक लाख वर्ग फीट में फैला कैसिनो था जिसमें 2800 स्लॉट मशीनें, और 87 टेबल गेम्स थे. इस होटल में दुनिया भर के सभी तरह के व्यंजन परोसने वाले 16 रेस्टोरेण्ट, स्विमिंग पूल, हेल्थ क्लब, स्पा तो थे ही, थी कोई 130 चमचमाती दुकानें भी. होटल का ‘अलाद्दीन थिएटर फॉर द परफार्मिंग आर्टस’ दावा करता है कि उसका प्रोसीनियम आर्च मंच विश्व का विशालतम है. होटल के एक भाग को नाम दिया गया है डेज़र्ट पैलेस यानि मरु महल. इसमें जब आप घूमते हैं तो अचानक वर्षा होने लग जाती है. चमत्कार यह कि पैलेस की पूरी छत कृत्रिम है. स्वभाविक ही है कि वर्षा भी कृत्रिम ही होती है, पर असली से भी ज़्यादा असली. अंधेरा छाता है, बादल गरज़ते हैं, बिजली कड़कती है, बूंदें आपको भिगोती हैं. इसी अलाद्दीन होटल में जो अनेक शो रोज़ होते हैं उनमें स्टीव वायरिक का जादू बहुत प्रसिद्ध है. खासा महंगा टिकिट, पर शो एकदम पैसा वसूल! हमने देखा. खेल तो करीब करीब वही जो हमारे यहां के जादूगर दिखाते हैं, लेकिन प्रस्तुति उनसे हज़ार गुना बेहतर. ध्वनि प्रकाश का आधुनिकतम उपयोग. और इन्हीं से सारे प्रभावों का सृजन. खेल में दर्शकों की सहभागिता भी. शो के टिकिट के साथ ड्रिंक मुफ्त.

हर होटल में ऐसे शो होते हैं. कुछ बा-टिकिट, कुछ बे-टिकिट. होटल बैली में हर रात दो बार एक ‘जुबली शो’ होता है जिसमें 2000 गैलन पानी में टाइटेनिक जहाज़ डूबता है. होटल सीज़र्स पैलेस में ‘अटलाण्टिस का पतन’(Fall of Atlantis) शीर्षक निशुल्क शो होता है जिसमें एटलस की संतानों का अटलांटिस पर नियंत्रण के लिये संघर्ष चित्रित किया जाता है. आदमकद से कोई तीन गुना बडी प्रतिमाएं और ध्वनि-प्रकाश की विस्मय- विमुग्धकारी कलाकारी. एकदम हाई-टेक! इसी तरह 3000 कमरों वाले होटल बेलाजियो में एक शो होता है - ‘ओ’ नाम का. टिकिट एक सौ डॉलर, पर उसके लिये भी प्रतीक्षा कई घण्टों की. कोई 90 मिनिट का यह शो 80 से ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय कलाकार, जिनमें तैराक, करतबबाज़ सभी होते हैं, पेश करते हैं. यह शो जीवन-प्रेम और मृत्यु की मानो महागाथा ही है.

एम जी एम ग्रैण्ड होटल, जिसमें 5034 कमरे हैं और जिसे दुनिया का सबसे बड़ा होटल माना जाता है, में सब कुछ एम जी एम स्टूडियो की मानिन्द है. होटल के बाहर ही एक बडा स्वर्णिम शेर बना हुआ है, जो एम जी एम का सुपरिचित प्रतीक है. भीतर बहुत सारी चीज़ों के अलावा एक लॉयन हेबिटाट (Lion habitat) भी है जहां दो ज़िन्दा शेर कांच की एक 34 फिट ऊंची छत पर अपने ट्रेनर के साथ अठखेलियां करते रहते हैं और आप नीचे से उन्हें देखते हैं. जब आप 4408 कमरों वाले लक्सर होटल में जाते हैं तो आप महज़ होटल में नहीं बल्कि एक 30 मंज़िला कांच के पिरामिड में घुसते हैं. इस होटल में प्राचीन मिश्र के रहस्य को आधुनिक तकनोलॉजी के माध्यम से सजीव किया गया है. अन्दर की सारी दीवारें यही एहसास कराती हैं कि आप मिश्र में हैं. तूतनखामन की क़ब्र भी यहां है. होटल में एक आइमेक्स (I-Max) थिएटर भी है जिसका पर्दा 68 फिट लम्बा और 48 फिट चौड़ा है. इसी होटल में एक अन्य थिएटर में हमने 4 आयामी (4 dimensional) फिल्म देखी. 2 आयामी फिल्में तो सारी ही होती हैं, तीन आयामी फिल्में भी कभी-कभार बन जाती है (जैसे हिन्दी की ‘छोटा चेतन’ या हाल की 'आबरा का डाबरा') पर यह चौथा आयाम कहां से आ गया? मन में बडी उत्कण्ठा थी जानने की. ऐसी फिल्मों में कथा का ज़्यादा महत्व नहीं होता. यह कथा समुद्री डाकुओं की थी. तीन आयाम तो सुपरिचित ही थे. डाकू ने बन्दूक तानी तो जैसे वह हमारी ही कनपटी से आकर लगी, मधुमक्खियां हमारे कानों के बिल्कुल पास आकर भिनभिनाईं. लेकिन ये तो तीन ही आयाम हुए. जब किसी ने पानी में छलांग लगाई तो समुद्र से जो पानी उछला, उसने हमें भी, वाकई, भिगोया. जब एक पहाड़ी से लुढकता हुआ विशालकाय पत्थर ज़मीन पर गिरा तो हम भी थरथराए. भीगना और थरथराना-ये ही थे चौथे आयाम. सीटों के नीचे फव्वारे लगे थे और उन्हें कंपाने का प्रबंध था. इस होटल में ‘मिडनाइट फैंटेसी’ नाम से एक टॉपलेस शो भी होता है. वैसे डांस, कैबरे वगैरह हर होटल में होते ही हैं.

जूलियस सीज़र के नाम वाला 2399 कमरों वाला होटल सीज़र्स पैलेस अपनी क्लासिक रोमन भव्यता की वजह से होटल कम और असल साम्राज्य ज़्यादा लगता है. इसके फोरम शॉप्स नामक बाज़ार में दुनिया के तमाम कीमती और बेहतरीन उत्पाद देखे-खरीदे जा सकते हैं. इस होटल के एक शो की चर्चा मैं थोडा पहले कर ही चुका हूं. 2023 कमरों वाले होटल न्यूयार्क-न्यूयार्क में जाकर लगता है कि आप वाकई न्यूयार्क ही पहुंच गये हैं. होटल के बाहर आपका स्वागत करती है सुपरिचित स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी और भीतर जाते हैं तो देखते हैं एम्पायर स्टेट बिल्डिंग, टाइम्स स्क्वायर, सेंट्रल पार्क वगैरह. इस होटल का एक बड़ा आकर्षण है न्यूयार्क हारबर की प्रतिकृति पर बना रोलर कोस्टर - मैनहट्टन एक्सप्रेस. 67 मील प्रति घण्टा की रफ्तार वाला यह रोलर कोस्टर इतनी कलाबाज़ियां खाता है कि आपका कलेजा मुंह को आने लगता है.

इतने सारे होटलों की चर्चा के बाद भी होटल वेनेशियन की चर्चा किये बगैर अधूरापन महसूस हो रहा है. 4049 कमरों वाले इस होटल में नहरों, गोण्डोला (छोटी नाव) और घूमते फिरते प्रदर्शनकारी कलाकारों के माध्यम से तो वेनिस को साकार किया ही गया है, जैसे ही आप प्रवेश करते हैं, इसकी छतों पर यूरोपीय कला के सर्वश्रेष्ट की बानगी देती हुई सुनहरी कलमकारी आपको मंत्र मुग्ध कर देती है. इस होटल का एक बडा आकर्षण है सेण्ट पीटर्सबर्ग, सोवियत रूस के विख्यात हर्मिटाज संग्रहलय की शाखा - गगनहाइम हर्मिटाज म्यूज़ियम. इन दिनों इसमें ‘The pursuit of pleasure’ नामक प्रदर्शनी चल रही थी जिसमें 16 से 20वीं सदी की रेनुआं, पिकासो, जान स्टीन, पीटर पाल रूबेंज़ आदि महान कलाकारों की लगभग 40 मूल कृतियां प्रदर्शित थीं. इतने महान कलाकारों की मूल पेण्टिंग्ज़ के सामने होना ही जीवन को सार्थक कर देने के लिये पर्याप्त है. इसी होटल का एक अन्य बडा आकर्षण है लन्दन के प्रसिद्ध मदाम तुसॉद के मोम संग्रहालय की एक शाखा.यहां कोई 100 चुनिंदा पुतले मौज़ूद हैं. जब आप अब्राहम लिंकन, जार्ज वाशिंगटन, जार्ज बुश, माइकल जैक्सन, मडोना, राजकुमारी डायना, एल्विस प्रीस्ले, फ्रैंक सिनात्रा, जूलिया राबर्ट्स आदि से मुखातिब होते हैं तो वाकई इनके साथ होने का ही अनुभव करते हैं. जब लोग इनके साथ खड़े होकर फोटो खिंचवा रहे थे तो हमारे लिये यह तै करना कठिन था कि कौन असली है और कौन नकली. ये पुतले हैं तो मोम के लेकिन इन्हें छूना मना नहीं है. आप चाहें हाथ मिलायें, चाहे गले में बांहें डालें…. जैसी आपकी मर्ज़ी. कुछ पुतले तो बोलते भी हैं, जैसे एल्विस प्रीसले का पुतला.

जब यह सब लिखते हुए ही मेरा मन नहीं भर रहा है तो सोचा जा सकता है कि इन सबको देखते हुए कैसा लगता होगा. अपनी होटल चर्चा को होटल बेलाजियो में हर दिन कई-कई बार होने वाले नि:शुल्क आधे घण्टे के संगीतमय फव्वारों के प्रदर्शन के ज़िक्र के साथ समेटता हूं. होटल के सामने बनी चौथाई मील लम्बी झील में जब सैकड़ों फव्वारे संगीत की स्वर लहरी के साथ अठखेलियां करते हैं तो बस देखते ही बनता है. फव्वारे मानो बोलने लगते हैं और उनके माध्यम से संगीत सुनाई देने लगता है. इसी होटल की लॉबी में विश्वविख्यात कलाकार डेल चिहुली रचित लगभग 2000 कांच के फूलों की छ्टा भी अद्भुत है.

हर होटल में थीम के आधार पर ही सब कुछ है. सभी में ढेरों-ढेर दुकानें हैं. दुनिया का हर बड़ा, महंगा और सुपरिचित उत्पाद यहां मौज़ूद है. हर जगह स्मृति चिह्नों की भरमार. आखिर हरेक अपनी यात्रा की स्मृति को संजोना तो चाहेगा ही. मज़े की बात यह कि इन सारे होटलों में प्रवेश नि:शुल्क है. आप मज़े में, बेझिझक घूमते रहें. कैसिनो में लोग खेल रहे हैं, पी रहे हैं. आप उन्हें देखते रहें. मन आये तो आप भी खेल लें, नहीं तो गुनगुना लें- ‘बाज़ार से गुज़रा हूं, खरीददार नहीं हूं’.

लास वेगस का एक और बडा आकर्षण है फ्रेमोण्ट स्ट्रीट. नगर के मुख्य आकर्षण केंद्र ‘द स्ट्रिप’ से कुछ मील दूर डाउन टाउन में स्थित यह गली नुमा बाज़ार अपने अनूठे ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रम के कारण हर पर्यटक के लिये ज़रूरी है. स्ट्रीट की कोई चौथाई मील लम्बी अर्ध गोलाकार छत पर रोज़ रात कोई सवा करोड एल ई डी (LED-एक तरह के छोटे बल्ब) और 550000 वाट स्टीरियो ध्वनि के साथ एक कम्प्यूटर चालित शो होता है. छत पर एक के बाद एक फूलों, तितलियों, नर्तकों, वगैरह की छवियां उभरती हैं और संगीत आपको झूमने को विवश करता है. यह प्रदर्शन तकनीक के कमाल की अनुपम मिसाल है.

तीन दिन भागते-भागते घूम कर हम इतने थक गये थे कि अगर चौथे दिन रुकते तो होटल में ही पड़े रहते. लेकिन मन नहीं भरा था. गालिब याद आ रहे थे-

गो पांव को नहीं ज़ुम्बिश, आंखों में तो दम है

रहने दो अभी लास वेगस को मेरे आगे !

(असल शे'र कुछ यों है-

गो हाथ को नहीं ज़ुम्बिश, आंखों में तो दम है,

रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे !)

*

लास वेगस की ख्याति ऐसे नगर के रूप में भी है जहां बड़े लोग विवाह करना पसन्द करते हैं. एल्विस प्रीस्ले ने यहीं शादी की थी और कुछ समय पहले ब्रिटनी स्पीयर्स ने यहां (पहली तथा अल्पजीवी) शादी कर सनसनी फैलाई थी. हर होटल में इसके लिये समुचित प्रबंध है. विवाह के लिये चैपल तक. इसे प्रचारित भी खूब किया जाता है. पर यह न समझ लें कि वेगस में केवल बड़े/अमीर लोग ही शादी कर सकते हैं. आम जन के लिये आसान सरकारी व्यवस्था भी है. आप एक सरकारी दफ्तर (जो सातों दिन, 24 घण्टे खुला रहता है) में जाएं, दो-एक साधारण फॉर्म भरें, बहुत थोड़ा-सा शुल्क जमा करायें : बस हो गई शादी. पूरी तरह सरकारी और सर्वमान्य. ज़रूरत बस केवल इतनी कि वर-वधु वयस्क हों. दरअसल सरल चीज़ों को सरल कैसे रहने दिया जाय, यह अमरीका से सीखना चाहिये. भई, अगर दो वयस्क शादी करना चाहते हैं तो करने दें. राज्य को भला इसमें क्यों आपत्ति हो? राज्य का फर्ज़ आपका जीवन सुगम बनाना है, न कि दुर्गम. आंकड़े बताते हैं कि वेगस में प्रति वर्ष लगभग 1,20,000 विवाह होते हैं.

लास वेगस की यह प्रशंसाभरी चर्चा करते वक़्त मेरे जेहन में डॉ भगवतशरण उपाध्याय की एक प्रसिद्ध समीक्षा (शायद अज्ञेय के उपन्यास ‘नदी के द्वीप’ की) के शीर्षक की याद आती रही. शीर्षक था-'सुन्दर पके फल में कीड़े' . क्या यह शीर्षक लास वेगस पर लागू नहीं होता? इतना खूबसूरत शहर, उसके मूल में क्या? जुआ ! एकदम अनैतिक! पाप!! और भला जिसके मूल में पाप हो वह सुन्दर कैसे हो सकता है? और जब पाप पुण्य की बात करूं तो भला यह कैसे हो सकता है कि ‘चित्रलेखा’ वाले भगवती चरण वर्मा याद न आयें? वो क्या कहा था उन्होंने, कि 'हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं. हम वो करते हैं जो हमें करना पड़ता है!' भई वाह !

हम लोग दूर से, भारत में, वेगस को एक पाप-नगरी के रूप में ही देखते-जानते रहे हैं. (अमरीका में भी जेरेमी कोरोनेडो जैसे लोगों की एक जमात है जो वेगस को ‘सिन सिटी’-पाप नगरी कहती है!) यही कारण है कि जब मैंने अपने मित्रों से फोन पर यह ज़िक्र किया कि हम वेगस जा रहे हैं तो उनकी प्रतिक्रिया कुछ खास तरह की, व्यंग्यपूर्ण थी. शायद अच्छे-बुरे के बारे में पीढ़ियों से बद्धमूल संस्कार हमें चीज़ों को उनके सही परिप्रेक्ष्य में देखने में अवरोधक सिद्ध होते हैं. अगर मैंने भी खुद अपनी आंखों वेगस को नहीं देखा होता तो मेरी भी धारणा वही होती जो मेरे मित्रों की थी, और है.

पर अब खुद अपनी आंखों लास वेगस को देखकर मैं अलग तरह से सोचने लगा हूं.

लास वेगस ने जुए को न केवल एक कला का दर्ज़ा प्रदान किया है, इसे पर्यटन से जोड़कर नगर, राज्य व देश की अर्थव्यवस्था को भी बेपनाह मज़बूती दी है. इस बात पर निश्चय ही घोर असहमतियां हो सकती हैं कि राज्य जुए को वैध करार दे तथा अपनी आय का साधन बनाये. मेरा खयाल है कि यदि चीज़ों को सही परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ये असहमतियां कम हो जाती हैं. क्या यह उपयुक्त नहीं लगता कि एक वयस्क समाज अपने नागरिकों को अपनी तरह से ज़िन्दगी जीने का और मौज़-मज़ा करने का हक़ दे? और अगर इससे राज्य की अर्थव्यवस्था सुधरती है तो किसी को आपत्ति क्यों हो? राज्य की ज़िम्मेदारी मैंने यहां इस रूप में देखी कि 18 वर्ष से कम वय के किशोर-बच्चे-शिशु जुआ नहीं खेल सकते. ये लोग धूम्रपान व मदिरापान भी नहीं कर सकते. इन नियमों का पूरी सख्ती से पालन किया व कराया जाता है. पर जो उम्र के लिहाज़ से समझदार हैं, अपना भला-बुरा पहचानने की योग्यता रखते हैं, उन्हें अपनी तरह से अपनी ज़िन्दगी को जीने दिया जाए, यह उचित लगता है. मैंने तो यह महसूस किया है कि जो लोग चाहते हैं, और अफोर्ड कर सकते हैं, उन्हें उनकी चाही खुशी सुलभ कराना और इसी के माध्यम से अपनी बहबूदी का इंतज़ाम कर लेना कतई गलत नहीं है. लास वेगस के होटल, कैसिनो और अन्यान्य संस्थान लाखों लोगों को आनन्द प्रदान करते हैं और हज़ारों लोगों के घरों में चूल्हा जलाते हैं. क्या इनकी यह सार्थकता कम है?

मैंने खुली आंखों और बहुत खुले मन से लास वेगस को देखा. यह देखा कि लोग मौज़-मज़ा कर रहे हैं पर किसी तरह की कोई अशिष्टता कहीं नहीं थी. जिसको जिस बात में आनन्द मिल रहा था, ले रहा था. मानो ‘कामायनी’ का आनन्दलोक बसा हुआ था. मनुष्य और उसके उद्यम ने घनघोर रेगिस्तान में जो स्वर्ग निर्मित कर दिया है, उसे देखे बगैर उसके सौन्दर्य की कल्पना की ही नहीं जा सकती. लास वेगस ने कई तरह से मेरी आंखें खोलीं. सितारों से आगे जहां और भी है का पूरा अर्थ यहीं आकर समझा मैंने. यहीं आकर यह देखा जाना कि भव्य क्या होता है. यहीं आकर यह देखा कि खुशी से दमकते चेहरे कैसे होते हैं. और यहीं आकर यह सबक भी लिया कि पाप पुण्य का निर्णय शून्य में नहीं किया जा सकता. कम से कम अपने बारे में तो कह ही सकता हूं कि लास वेगस ने मुझे ज़िन्दगी को देखने का नया नज़रिया दिया है. जब तक चीज़ों को आप खुद, और वह भी एकदम खुले मन से न देखलें, आपके निष्कर्ष भ्रांत ही रहेंगे. इसीलिये, मैंने अपने सन्दर्भ में कहा कि जिसने वेगस नहीं देखा, वह तो मानों जनमा ही नहीं.

*********************

------------

1. शीर्षक के लिये असगर वज़ाहत के नाटक 'जिस लाहौर नहीं देख्या ओ जनम्या ही नहीं'

तथा अज्ञेय की पुस्तक- ' अरे! यायावर रहेगा याद' के प्रति कृतज्ञतापूर्ण आभार.

------------

(क्रमशः अगले अंकों में जारी....)

------------

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. शानदार!! बधाई स्वीकार करें मेरी इस बेहतरीन विवरण के लिए!!

    स्वतंत्रता दिवस पर बधाई व शुभकामनाएं!!

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: जिन वेगस नहीं वेख्या...
जिन वेगस नहीं वेख्या...
http://bp3.blogger.com/_t-eJZb6SGWU/RriTLQ6Yy0I/AAAAAAAABMo/kDQPAzJbqJA/s200/durga+prasad+agrwal.JPG
http://bp3.blogger.com/_t-eJZb6SGWU/RriTLQ6Yy0I/AAAAAAAABMo/kDQPAzJbqJA/s72-c/durga+prasad+agrwal.JPG
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2007/08/blog-post_14.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2007/08/blog-post_14.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content